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तेईसवाँ अध्याय
भारतवर्ष––वैभव का घर*[१]

मदर इंडिया की लेखिका के लिए यह देश न केवल वर्तमान समय में बल्कि सदा से ही 'दरिद्रता का घर' रहा है। इस बात को वह पूरी गम्भीरता के साथ कहती है और अपनी सम्मतियों को ऐतिहासिक खोजों के आधार पर भी उपस्थित करने का ढोंग रचती है। परन्तु उसको इतिहास का उतना ही कम ज्ञान है जितनी शीघ्रता के साथ वह बिना विचारे अपनी सम्मतियाँ निश्चित करती है। उसका थोथा ऐतिहासिक ज्ञान उस समय उसे और भी नीचे गिरा देता है जिस समय वह सिक्खों के विद्रोह को १८४५ की घटना जताने लगती है। (पृष्ठ २५९) श्रीयुत एडवर्ड थामसन ठीक ही यह प्रश्न करते हैं कि आखिर सिक्खों के विद्रोह किया किसके विरुद्ध? अभी तक अँगरेज़ों ने उनके देश को अपने राज्य में नहीं मिलाया था। क्या उन्होंने स्वयं अपने स्वजातीय शासन के विरुद्ध विद्रोह किया था? कदाचित् वह बात स्वयं इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है! परन्तु इसका यह अर्थ अवश्य है कि पाठकों को मिस मेयो के भारतीय इतिहास के ज्ञान पर भरोसा न करना चाहिए।

केवल एक धृष्ट––अर्थात मूर्ख और जल्दबाज़––परिणाम निकालनेवाला ही ऐसा हो सकता है जो यह कहे कि भारतवर्ष से ग्राम्य-शासन-पद्धति का कभी विकास नहीं हुआ। मिस मेयो लिखती है––'यह बात ध्यान देने की है कि भारतवर्ष का इतिहास––उत्तर का भी और दक्षिण का भी––केवल अगणित युद्धों और एक वंश को हटा कर दूसरे वंश के शासन ग्रहण करने की घटनाओं का इतिहास है। यहाँ के निवासियों में म्युनिस्पैलटी, स्वतन्त्र नगर-प्रबन्ध, प्रजातन्त्र और राजनैतिक ज्ञान आदि का भाव कभी उत्पन्न ही नहीं हुआ।' मिस मेयो ने अपने 'दरिद्रता का घर भारतवर्ष' नामक अध्याय में इसी


  1. * इस अध्याय की सामग्री मुख्यत: मेरी पुस्तक––'इँग्लेंड पर भारतवर्ष का ऋण'––से ली गई है।