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भारतवर्ष––वैभव का घर

प्रकार की अनेक सम्मतियाँ प्रकट की हैं। उनका न तो कोई ऐतिहासिक प्रमाण दिया गया है और न दिया ही जा सकता है। उसकी पुस्तक के २५१ वें पृष्ठ पर लिखा है––'इस देश में एक स्थान से दूसरे स्थान को आने जाने के लिए सड़कें ऐसी थीं जैसी कि बैलों के चलने से उनके खुरों के कारण कीचड़ और धूल में बन सकती हैं। ऐसे ही थोड़े से पुल भी थे।' परन्तु इस बात का खण्डन तो स्वयं मिस मेयो की पुस्तक की विषय-सूची से हो जाता है। उसकी पुस्तक एक अंश का शीर्षक है––'ग्रैंड ट्रंक रोड।' यदि उसे इस बात का किञ्चिन्मात्र भी ज्ञान होगा कि 'ग्रैंड ट्रंक रोड' क्या वस्तु है तो वह इतना अवश्य जानती होगी कि इस सड़क को न तो बैलों ने बनाया था न उसके अँगरेज़ बहादुरों ने। सब बात तो यह है कि अँगरेज़ों के आगमन से पूर्व भारतवर्ष की कुछ सड़कें ऐसी थीं जिनकी मीलों की लम्बाई चार अङ्कों में गिनी जाती थी और रेल-पथ बनने से पूर्व उनके एक सिरे से दूसरे पर पहुँचने के लिए यात्रियों को उन पर महीनों चलना पड़ता था।

अपनी पुस्तक के 'दरिद्रता का घर' शीर्षक अध्याय में मिस मेयो ने उन वर्णनों को भी सम्मिलित कर लिया है जो यात्रियों ने इस विशाल देश के किसी भाग में अकाल के दिनों में जा निकलने पर लिखे हैं। परन्तु इसे बीते युग का सच्चा ऐतिहासिक चित्र कहना कठिन है। यह सम्भव है कि बीसवीं शताब्दी के अमरीकन आदर्श के अनुसार भारतवर्ष वैभवशाली न रहा हो, परन्तु बीते युगों के उपयुक्त आदर्शों को सामने रखकर विचार किया जाय तो भारतवर्ष निःसन्देह धन-धान्य से सम्पन्न और समुन्नत देश था।

श्रीयुत बी॰ ए॰ स्मिथ के मतानुसार भारतवर्ष का वह भाग्य जो दारा के साम्राज्य में सम्मिलित था, उसके सम्पूर्ण राज्य में सबसे धनी प्रान्त था[१]

थारन्टन-कृत ब्रिटिश भारत के इतिहास का प्रथम पैराग्राफ इस प्रकार आरम्भ होता है:––

"जब नील नदी की बाटी पर तुच्छता का दृष्टि-पात करनेवाली पिरमिडों की सृष्टि नहीं हुई थी, जब योरोपियन सभ्यता के पालने माने जानेवाले


  1. भारतवर्ष का आरम्भिक इतिहास, तृतीय संस्करण, पृष्ठ ३३।

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