सन्देह प्रकट करने लगते हैं। हम चौदहवीं सदी के मुग़लों के आक्रमणों की 'पूर्व में उन्नीसवीं सदी की ब्रिटिश-सेना की विजयी, नम्न और दयालुतापूर्ण चढ़ाइयों' से तुलना करते हैं। परन्तु यदि हमारा उद्देश्य न्याय-युक्त हो तो हमें भारतवर्ष पर मुसलमानों के आक्रमणों की तुलना इँगलैंड पर तत्कालीन नारमनों के आक्रमणों से करनी चाहिए––मुग़ल बादशाहों के चरित्र की तुलना पश्चिम के तत्कालीन बादशाहों के चरित्र के साथ करनी चाहिए––१४ वीं शताब्दी के भारतीय युद्धों की तुलना फ्रान्स के युद्धों या ऋसेड्स से करनी चाहिए––हिन्दुओं पर मुस्लिम शासन के प्रभाव की तुलना एँग्लोसैक्सनों पर नारमन-शासन के उस समय के प्रभाव से करनी चाहिए जब अंगरेज़ कहलाना गाली समझा जाता था जय न्यायाधीश अन्याय के स्त्रोत होने थे––जब मजिस्ट्रेट लोग जिनका कि न्याय करना कर्तव्य होता था, अत्यन्त निर्दयी और साधारण चोरों और डाकुओं से भी बढ़कर लुटेरे होते थे––जब बड़े लोग इतने धन-लोलुप होते थे कि वे इस बात को सोचते ही न थे कि यह धन कैसे प्राप्त किया जा रहा है––जब इन्द्रिय-लोलुपता इतनी बड़ी चढ़ी थी कि स्काटलैंड की एक राजकुमारी को 'विषयी लोगों के हमलों से बचने के लिए धार्मिक जीवन और परिधान की शरण लेनी पड़ी थी।' (हेनरी आफ़ हनिंगटन, एँग्लो-सैक्सन इतिहास और ईडमन)
"कहा जाता है कि भारतवर्ष के मुसलमान राजवंशों का इतिहास आरम्भिक विजेताओं की निर्दयत्ता और लोलुपता के उदाहरणों से भरा पड़ा है। परन्तु तत्कालीन मसीही इतिहास भी ऐसे ही उदाहरणों से परिपूर्ण मिलता है। ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त में जब प्रथम क्रुसेडरस ने जेरूसलम पर अधिकार किया था तब विपक्षी सेना के '४०,००० मनुष्य बिना किसी भेद-भाव के तलवार के घाट उतार दिये गये थे। न हथियारों से वीरों की रक्षा हुई न शत्रु की शरण लेने से कायरों की। आयु, लिङ्ग, जाति आदि किसी का विचार नहीं किया गया। बच्चे और माताएँ एक तलवार से आहत की गई। जेरुसलम की सड़कें मुर्दों से पट गई, प्रत्येक गृह से पीड़ा और अधीरता का आर्तनाद सुनाई पड़ने लगा।' बारहवीं शताब्दी में जब फ्रान्स के बादशाह सप्तम लूइस ने वित्री नामक नगर पर अधिकार किया था तब उसने 'उस नगर लगा देने की आज्ञा दी थी।' इसी समय इँगलैंड में हमारे स्टीफेन के अधीन 'इतने बेग से युद्ध हुआ था कि भूमि बिना खेती के छोड़ दी गई थी और कृषि के औज़ारों को कोई पूछनेवाला न था।' चौदहवीं शताब्दी में फ्रांस में जो युद्ध हुए 'उनका परिणाम अत्यन्त भयानक और विनाशक था। किसी देश या काल को ऐसा अनुभव नहीं है।' कहा जाता है कि मुसलमान विजेताओं की अतृप्त निर्दयता के जो प्रमाण मिलते हैं वे उनकी अतृप्त उदारता के प्रमाणों से कहीं अधिक पुष्ट हैं। हमारे पास तत्कालीन ईसाई विजेताओं की