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भारतवर्ष––वैभव का घर

जिनकी जानकारी के सम्बन्ध में किसी को सन्देह नहीं हो सकता और जिनकी प्रामाणिकता को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता।"

मिस्टर टारेन्स अपने पाठकों से भारतीय शासकों की नास-मात्र की अपहरण नीति, निन्दा और धर्मान्धता की तुलना बोर्जियल, नवम लुइस, द्वितीय फिलिप, तृतीय रिचर्ड, मेरी व्यूडर, और अन्तिम स्टुअर्ट की करतूतों से करने के लिए कहते हैं; और उन्हें योरप में भूतकाल कैथरिन डे मेडिसी से लेकर लुइस ले ग्रैंड तक––निर्दयी फिलिफ से लेकर मूर्ख फर्डिनंड तक––विश्वासघाती जोन से लेकर धूर्त चार्लस तक (तथा असक्काय के पितृघाती पीटर और नेपोलियन बोरबन्स को भी बिना विस्मृत किये) के अनुचित शासन पर विचार करने के लिए कहते हैं। इसके पश्चात् वे इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि यह बात दक्षिणी एशिया के सम्बन्ध में उतनी सत्य नहीं है जितनी पश्चिमीय योरप के सम्बन्ध में कि वहाँ के प्रधान या आश्रित शासन के प्रतिदिन के कार्य अर्द्ध-पाशविक, क्रूर, स्वार्थमय और लोलुपतापूर्ण होते थे।

रिफ़ार्म पैम्फलेट नम्बर ९ में हम पुनः पढ़ते हैं कि:––

"हिन्दू और मुसलमान दोन जातियों के लेखक एक-स्वर से कहते हैं कि मुसलमानों के प्रथम आक्रमण के समय में भारतवर्ष बड़ी उन्नति पर था। दोनों विस्तार के साथ कन्नौज राज्य की राजधानी की विशालता एवं सुन्दरता का तथा सोमनाथ के मन्दिर की अक्षय विभूति का वर्णन करते हैं।"

अब जरा ब्रिटिश शासक और इतिहासकार एलफिन्स्टन की बातों पर ध्यान दीजिए,[१]––

"साधारण समय में लोगों की जो स्थिति थी उससे उन पर किसी प्रकार की ज्यादती का पता नहीं चलता। फीरोज शाह (१३५१-१३९४ ई॰) के इतिहास-लेखक ने विस्तार के साथ वर्णन किया है कि उस समय प्रजा सुखी थी, लोगों के घर सुन्दर होते थे, साज व सामान की कमी नहीं रहती थी, और स्त्रियाँ आम तौर पर चाँदी और सोने के गहने पहनती थीं।"


  1. एलफ़िन्स्टन, भाग २, पृष्ठ २०३