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भारतवर्ष––वैभव का घर

कम्पनी को शासन-पद्धति के सम्बन्ध में लिखते समय वारेन हेस्टिंग्ज़ को भी कड़ी भाषा का प्रयोग करना पड़ा था। उसने लिखा था[१]:––

"मुझे भय है कि हमारी दूसरों के अधिकारों के दबाने की प्रवृत्ति तथा उसके उद्दण्डतापूर्ण प्रयोग के कारण हिन्दुस्तान की समस्त शक्तियां हमसे उसी भाँति शङ्कित हो रही हैं जैसे वे हमारी सेना के कारण शङ्कित रहती हैं। हमारी इस अधिकार-प्रवृत्ति तथा हमारे व्यक्तियों की अनियन्त्रित व्यभिचारलीला से हमारे राष्ट्रीय सम्मान को बड़ा आधात पहुँचा है।...... भारतवर्ष में प्रत्येक व्यक्ति हमसे सम्बन्ध जोड़ने से डरता है।

"नवाब के कोप और अधिकार पर हमारे नौकरों की तनरब्बाहों और पेंशनों का भार तथा कम्पनी की सैनिक और प्रबन्ध-सम्बन्धी सेवाओं के व्यय का दबाव इतना अधिक पड़ता है कि उससे सहन नहीं होता। देशी नौकरों और वज़ीर के आदमियों को उनकी सेवा और सम्बन्ध के लिए पुरस्कार आदि न देने के कारण सारा देश हमसे द्वेष और घृणा करने लगा है। मुझे भय है कि मेरे आशय को कम लोग समझेंगे यदि मैं पूछूँ की संरक्षित व्यक्तियों के लिए हम नवाब वज़ीर पर किस अधिकार या नीति से कर लगाते हैं। और इससे भी कम लोग इस बात को समझेंगे यदि मैं पूछूँ कि नवाब की रक्षा के लिए उस पर एक सेना किस अधिकार-नीति से लादी जाती है जिसके लिए वह व्यय नहीं दे सकता और जिसको वह चाहता भी नहीं। मैं उसके मुँह पर यह बात कैसे कहूँ कि 'आप इसे चाहते तो नहीं परन्तु इसके लिए आपको व्यय देना होगा।'......अवध में प्रत्येक अँगरेज़ को वही अधिकार प्राप्त थे जो एक स्वाधीन व्यक्ति और बादशाह के हो सकते हैं।...वे एक लाख के कर का दावा करना अपना अधिकार समझते थे यद्यपि वे एक ही बार में दो लाख से भी अधिक जुए में गँवा देते थे। (मैंने यह एक जानी हुई बात के आधार पर लिखा है)[२]।"

अब मरहठों के राज्य के सम्बन्ध में सुनिए। ऐंक्वेटिल डु पेरन नामक यात्री ने अपने 'भारत-यात्रा का संक्षिप्त वर्णन' नामक लेख में जो १७६२


  1. ग्लीग कृत हेस्टिंग्ज़ का जीवन-चरित्र, भाग २, रिफ़ार्म पैम्फलेट के २०वें पृष्ठ पर उद्धृत।
  2. हेस्टिंग्ज़ का जीवन-चरित्र भाग २, पृष्ठ ४५८, रिफार्म पैम्फलेट, पृष्ठ २६।