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भारतवर्ष-वैभव का घर


कोमल और पितृवत् है। मैं समझता है उनकी क्षति का कारण हिन्दयों का कृषि-सम्बन्धी ज्ञान तथा कृषि-प्रेम है। उन्हें इस बात का ज्ञान हमसे कहीं अधिक है कि नगरों और गांवों की उन्नति किस प्रकार करनी चाहिए। इसी उद्देश से धनाढ्यों को प्रोत्साहन दिया जाता हैं और वे व्यापार में पूजी लगाते हैं।... परन्तु उन्नति के समस्त कारणों में से सर्वश्रेष्ठ कारण यह है कि लोग ग्राम्य तथा अन्य देशीय संस्थाओं की अमित रूप से सहायता करते हैं और बस्ती के सब श्रेणियों के लोगों के लिए कार्य करने की व्यवस्था रहती है। हमारी शासन-पद्धति में इसकी बड़ी कमी है।"

अवध के सम्बन्ध में भी हमें विशप हीवर के 'जरनल' में इधर-उधर कुछ बाते मिलती हैं। विशप ने भरतपुर के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है*[१]:-

"भारतवर्ष में हमने जो सर्वोत्तम कृषि-प्रधान और सुसिंचित देश देखे उनमें से एक यह भी है। भूमि पर जो फसल खड़ी थी, बद वास्तव में बड़ी सुन्दर लगती थी। रुई की फसल......तो बहुत ही सुन्दर थीं। मैंन कई एक शक्कर बनाने के कारखाने देखे और बड़े बड़े भूमि-खण्ड देखे जिनमें से ईख काट ली गई थी। यह इस देश के धनी होने का निश्चित अमात्य है।......जन-संख्या अधिक नहीं प्रतीत होती थी परन्नु घाम अच्छी स्थिति में थे। सव बातों ने मिलकर आँखों के सामने व्यवसाय का जो दृश्य खड़ा किया वह मैंने राजपूताने में जो देखने की आशा की थी और कम्पनी के राज्य में जो देखा था, उससे इतना अच्छा था.........कि मैंने यह अनुमान किया कि या तो भरतपुर का राजा एक आदर्श भूप था और अपनी प्रजा का पुत्र के समान पालन करता था या ब्रिटिश प्रान्तों में जिस शासन-पद्धति से काम लिया जा रहा था वह कुछ देशी राज्यों की अपेक्षा देश के सुख और उन्नति के लिए कम अनुकूल थी।"

१८२७ ईसवी में गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्ज़ ने घोषणा की थी (पार्लियामेंट-सम्बन्धी काग़ज़ात, पृष्ठ १५७) कि:-

"हमारे शासन में एक नवीन वंश की उत्पत्ति हुई है। हमारे कानून की छाया के नीचे पले इस वंश की दो मुख्य विशेषताएँ ये हैं-मुकदमेबाज़ी की प्रवृत्ति जिसके लिए हमारी न्याय सम्बन्धी संस्थाएँ पूरी नहीं पड़ती और एक विशेष प्रकार का धर्माचरण जो वास्तव में बहुत गिरा हुआ है।"

  1. * जरनल। भाग २, रिफा़र्म पैम्फलेट में उद्धृत।