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चौबीसवाँ अध्याय

भारतवर्ष-'दरिद्रता का घर'

भारतवर्ष शेष साम्राज्य के लिए सदा पानी भरनेवाला और लकड़ी चीरनेवाला बनकर रहना पसन्द न करेगा और न उसे करना ही चाहिए।

जे॰ अस्टिन चम्वरलेन,

भारत मन्त्री,

लन्दन 'टाइम्स' ३० मार्च १९१७

ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारतवर्ष की आर्थिक स्थिति क्या है? इसका पता उपरोक्त उद्धरण से भली भाँति चल जाता है। भारतवर्ष ने ग्रेट-ब्रिटेन को धनी बनाया है और ग्रेटब्रिटेन ने भारतवर्ष को दरिद्र कर दिया है। यह कथा सब प्रकार से योग्य अँगरेज़ और भारतीय प्रामाणिक लेखकों द्वारा अनेक पुस्तकों में कही गई है। मैंने अपनी 'इँगलेंड पर भारतवर्ष का ऋण' नामक पुस्तक में उन्हीं सब बातों को घनीभूत किया है। वर्तमान अध्याय मुख्यतः उसी पुस्तक से लिया गया है।

ब्रिटेन को अपनी औद्योगिक काया-पलट में जो सफलता मिली है उसमें भारतवर्ष का एक बड़ा भाग रहा है। इस बात को सब स्वीकार करते हैं। परन्तु ग्रेटब्रिटेन की औद्योगिक और आर्थिक उन्नति में भारत ने कितना अधिक योग दिया है? यह बात बहुत कम लोगों को विदित है।

भाप के इञ्जिनों के बनने तथा यन्त्रों द्वारा कताई बुनाई आरम्भ होने से ब्रिटेन के व्यवसाय की जो कायापलट हुई है उसके पहले भारतवर्ष की क्या आर्थिक स्थिति थी और क्या इँगलेंड की थी? आइए इस पर पृथक् पृथक् विचार करें।

अँगरेज़ों के आने से पहले भारतवर्ष की कैसी आर्थिक उन्नति थी? यह हम पाठकों को पिछले अध्याय में बता आये हैं। सत्रहवीं और अठारहवीं