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दुखी भारत

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मिस मेयो के प्रमाणों का प्रयोग

हिन्दुओं के जीवन, रीति-रिवाज, और आचरण तथा हिन्दु-धर्म और हिन्दू-दर्शन पर लिखते समय मिस्त मेयो ने मुख्यतः 'एबे डुबोइस' के प्रमाणों का सहारा लिया है। और इन विषयों पर उसी की पुस्तक से ख़ूब अवतरण दिये हैं। इसलिए यहां पहले एबे के ही प्रमाणों पर विचार कर लेना और यह बता देना कि उसकी लम्मातियों और आलोचनाओं का क्या मूल्य हो सकता है, उचित होगा।

'डुबोइस' महाशय ईसाई मिशनरी थे। फ़्रांस की राज्य-क्रान्ति के भय से भाग कर वे भारतवर्ष में आये और यहीं बस गये। हमें यह विश्वास करने का कारण है कि वे जब तक हिन्दुओं में रहे, ब्राह्मण बन कर रहे। यह भी विश्वास करने का कारण है कि उन्होंने संस्कृत*[१] की अपेक्षा तामिल का कहीं अधिक अध्ययन किया था। इस प्रकार कहना यह कहने का एक विनम्न ढङ्ग है कि वे संस्कृत बहुत नहीं जानते थे। हिन्दू-धर्म और हिन्दू-सभ्यता के विषय में उनकी सम्मतियाँ बहुत मूल्यवान नहीं हैं। डुबोइस के समय में हिन्दू-साहित्य और हिन्दू-धर्म का योरुपवालों को बहुत संकुचित ज्ञान था। तब की अपेक्षा अब बहुत सी ऐसी बातें खोज निकाली गई हैं और लोगों को बताई गई हैं जिनका वैज्ञानिक महत्त्व बहुत अधिक है। और पश्चिम के अनेक विद्वानों ने हिन्दू-धर्म, हिन्दू-दर्शन-शास्त्र, और हिन्दू क़ानून के बारे में बहुत कुछ लिखा है। पश्चिमीय विद्वानों की खोजों में जो न्यूनता रह गई थी उसे अब भारतीय पंडित पूरी कर रहे हैं। योरप के लोगों में मैक्समूलर, ह्यूसन, बेल्किन्स, रपसन, कोलब्रुक, सर विलियम जोन्स, सिलवियन लेवी और सैकड़ों दूसरे तथा भारतीयों में जायसवाल, बी० एन० सील, आर० जी० भाण्डारकर, सरकार, आर० एल० मित्र और सैकड़ों दूसरे हैं। इन विषयों पर इन विद्वानों के प्रमाण एबे


  1. डुबोइस के किताब की (आक्सफोर्ड संस्करण) भूमिका पृष्ठ ६