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दुखी भारत

वर्ष के व्यवसायों को नष्ट कर देने और उसकी कृषि-सम्बन्धी उन्नति को रोक देने के लिए यथेष्ट से भी अधिक थी। कोई देश कितना ही धनी और साधन-सम्पन्न क्यों न हो बिना हानि के ऐसे निकास को सहन नहीं कर सकता।

ईस्ट इंडिया कम्पनी अपना व्यापार किस प्रकार करती थी? इसका एक उदाहरण नीचे सरजेंट ब्रैगो के एक लेख से दिया जाता है:—

"कोई महाशय ख़रीदने या बेचने के लिए अपना गुमाश्ता भेजते हैं। गुमाश्ता अपने आपको यह समझता है कि वह प्रत्येक स्थानिक निवासी के हाथ अपना माल बेचने या उसका माल स्वयं खरीदने के लिए उसे विवश कर सकता है। यदि कोई अस्वीकार करता है (असमर्थता की अवस्था में भी) तो तुरन्त उसे कोड़ों से पीटा जाता है या उसे जेलख़ाने में भेज दिया जाता है। परन्तु यदि कोई गुमाश्ते की इच्छानुसार उसका माल ख़रीदने और उसके हाथ अपना माल बेचने पर तैयार हो जाता है तो भी गुमाश्ते को सन्तोष नहीं होता। तब एक दूसरे प्रकार का बलप्रयोग किया जाता है। व्यापार की भिन्न भिन्न शाखाओं पर गुमाश्ते अपना ही अधिकार रखते हैं। और जिन वस्तुओं का वे व्यापार करते हैं उन्हें दूसरे देशी व्यापारियों को न तो ख़रीदने देते हैं और न बेचने देते हैं और देशी व्यापारी ऐसा कर देते हैं तो गुमाश्ते फिर वही कोड़े मारना या जेल में बन्द करना आरम्भ कर देते हैं। और फिर जो वस्तुएँ वे ख़रीदते हैं उसके लिए अन्य व्यापारियों की अपेक्षा बहुत कम मूल्य देने का वादा करते हैं और प्रायः मूल्य देना भी अस्वीकार कर देते हैं। यदि मैं रोक-टोक करता हूँ तो तुरन्त मेरी शिकायत की जाती है। ये और इसी प्रकार के अन्य अत्याचार जिनका वर्णन नहीं हो सकता, इसी प्रकार प्रतिदिन बङ्गाल के गुमाश्तों द्वारा होते रहते हैं। यही कारण है कि यह स्थान (बाकरगञ्ज, का एक फलता फूलता ज़िला) अब उजाड़ होता जा रहा है। प्रतिदिन बहु-संख्यक लोग किसी सुरक्षित स्थान में बसने के लिए इस शहर को छोड़ कर चले जा रहे हैं। और बाजारों में, जहां पहले सब वस्तुएँ बहुतायत से मिलती थीं, अब कोई काम की वस्तु देखने में नहीं आती। गुमाश्तों के नौकर गरीब लोगों को सताते हैं। यदि ज़मींदार कुछ हस्ताक्षप करता है तो वे उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव करने की धमकी देते हैं। पहले कचहरी में न्याय किया जाता था पर अब प्रत्येक गुमाश्ता जज बन बठा है और प्रत्येक व्यक्ति का घर कचहरी बन रहा है। वे स्वयं ज़मींदारों पर भी दफ़ाएँ लगा देते हैं और बनावटी क्षति, जैसे उनके नौकरों के साथ झगड़ा हो जाना या उनकी किसी वस्तु की चोरी