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दुखी भारत

कोष पानी की भाँति इँगलेंड की ओर बहा दिया गया और वहाँ जाकर उसने इँगलेंड की सम्पूर्ण आर्थिक परिस्थिति का किस प्रकार काया-पलट कर दिया। हम किसी ऐसे अँगरेज़ या भारतीय लेखक को नहीं जानते जो उन बातों को अस्वीकार करता हो या उनमें सन्देह करता हो जिन पर सम्पत्ति के बहिर्गमन का सिद्धान्त अवलम्बित है। इस बात में तो सब दलों के लोग सहमत हैं कि कम से कम तीस वर्षों तक, १७५७ ईसवी से लेकर १७८७ ईसवी तक, ईस्ट इंडिया कम्पनी के नौकरों-द्वारा बङ्गाल बराबर 'लूटा गया'।

समाजवाद के प्रसिद्ध नेता स्वर्गीय मिस्टर एच॰ एम॰ हिंडमैन ने २ जुलाई १९०१ ईसवी को लन्दन के 'मार्निग पोस्ट' नामक समाचार-पत्र में एक चिट्ठी प्रकाशित करवाई थी। उसमें उन्होंने लिखा था:––

"बीस वर्ष से अधिक हुए स्वर्गीय सर लुइस मैलेट ने (मैं समझता हूँ उस समय के भारत-मंत्री लार्ड क्रैनबुक और सहायक मंत्री स्वर्गीय एडवर्ड स्टैनहोप, जो मेरे मित्र भी थे, को बता कर और उनकी स्वीकृति लेकर) मुझे इंडिया आफ़िस के उन गुप्त पर्चों आदि को दिखलाया जिनमें इँगलेंड के लिए भारतवर्ष की इस सम्पत्ति-निकासी और उस देश पर उसके प्रभावों का वर्णन था तथा जिन्हें भारतवर्ष के अर्थमंत्रियों और दूसरे लोगों ने लिखा था। परिस्थिति इतनी भयङ्कर जान पड़ती है कि मैं लार्ड जार्ज हैमिल्टन से यह कह देना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि वे १८८० तक के और उसके पश्चात् के इस विषय से सम्बन्ध रखनेवाले इन गुप्त पर्चों को हाउस आफ़ कामन्स में विचार के लिए उपस्थित करें। यहाँ मैं यह भी कह देना चाहता हूँ कि जनता को उन लोगों के नाम सुन कर आश्चर्य होगा जो व्यक्तिगत रूप से इस बात में मुझसे सहमत हैं। उपाय केवल एक यही है, और सम्भवतः उसके लिए बहुत देर भी हो गई है, कि यह धन-हरण रोक दिया जाय और हमारी वरर्मान नाशक शासन-पद्धति के स्थान पर अँगरेज़ों की मामूली देख-रेख में दृढ़ देशी राज्य स्थापित किये जायँ।"

मिस्टर विलियम डिग्बी ने अपनी 'सम्मुन्नत ब्रिटिश-भारत' नामक पुस्तक में भारतीय नीली किताब के दो पृष्ठों का फ़ोटो दिया है। उसमें इस बहिर्गमन को इस प्रकार स्वीकार किया गया है:––

"ग्रेट ब्रिटिन भारतवर्ष से चुंगी-द्वारा कर तो बसूल ही करता है वह तीनों सूबों की नौकरियों की उस बचत से भी लाभ उठाता है जो भारतवर्ष के