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भारतवर्ष––'दरिद्रता का घर'

कम्पनी का चार्टर बदलने के समय हाउस आफ़ कामन्स की सेलेक्ट कमेटी के सामने गवाही देते हुए कहा था:––

"प्रश्न––क्या आप समझते हैं उनमें (भारतवासियों में ऐसी कथाएँ चली आती हैं जिनसे यह विदित होता है कि उनकी आर्थिक स्थिति पूर्वकाल में देशी नरेशों के अधीन वर्तमान समय की अपेक्षा अच्छी थी?

"उत्तर––मैं समझता हूँ कि साधारणतया इतिहास यही कहता है कि पहले उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। आरम्भ-काल से लेकर जहाँ तक का इतिहास मिलता है, सबसे यही ज्ञात होता है कि वे सदैब अच्छी से अच्छी दशा में रहे हैं।

"प्रश्न––जब वे हम लोगों की अपेक्षा युद्ध में अधिक प्राणों की बलि करते थे और अधिक धन नष्ट करते थे और युद्ध भी उनकी सीमा के बाहर न हेकर प्रायः उनके राज्य के भीतर ही होते रहते थे, तब आप यह कैसे कहते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति हमारे समय की अपेक्षा अच्छी थी और उन्हें नहर सिंचाई और तालाबों के निर्माण आदि में पूजी लगाने की योग्यता हम से अच्छी थी?

"उत्तर––हममें अधिक व्यय करने का दोष है जिससे कि वे स्वतन्त्र हम अपने दीवानी और सेना-विभाग में राज्य-कर का बहुत बड़ा भाग व्यय कर देते हैं। हमारा यह दोष योरपियन ढङ्ग का ही दोष है। इस कारण हमारा शासन आवश्यकता से बहुत अधिक खर्चीला है। मैं समझता हूँ इसका यही एक बड़ा कारण है।"

जब जोन सल्लिवन से यह प्रश्न किया गया कि क्या आप साम्राज्य का सेना-विभाग ब्रिटिश के हाथों में देकर शेष ब्रिटिश-राज्य के स्थान पर देशी राज्य पसन्द करेंगे? तब उसने अपनी सम्मतियों को तर्क-पूर्ण निष्कर्ष के रूप में उपस्थित करने में ज़रा भी सङ्कोच नहीं किया:––

"क्या न्याय के सिद्धान्त पर ब्रिटिश राज्य का एक बड़ा भाग देशी नरेशों को दे देंगे?"

"हाँ!"

"क्या इसलिए कि हमने बिना किसी न्याय या उचित दावे के बल प्रयोग या अन्य उपायों से उन पर अधिकार कर लिया है?