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बुराइयों की जड़––दरिद्रता

हम यह बड़ी अच्छी तरह कह सकते हैं कि भारतवर्ष में, जिन स्थानों में सिंचाई के प्रबन्ध हैं उनके अतिरिक्त, सर्वत्र, सदा अकाल पढ़ा रहता है।"

इस संसार में भारतवर्ष के निवासी सबसे अधिक ग़रीब हैं। यदि ऐसी दरिद्रता योरप या अमरीका के किसी देश में होती तो अब तक लोगों ने सरकार का तख्ता उलट दिया होता। श्रीयुत अरनाल्ड लप्टन का कथन है[१] कि 'भारतवासियों के सम्बन्ध में सबसे प्रथम और सबसे आवश्यक विचारणीय बात यह है कि यहाँ सौ में बहत्तर मनुष्य कृषि-कार्य करते हैं।'

इस सम्बन्ध में हमें वे बतलाते हैं कि[२]:––

"यह जानना बड़ा सरल है कि भारतवर्ष के अधिकांश भागों के किसानों में इतनी अधिक दरिद्रता क्यों है? बात इतनी ही है कि भूमि की दशा बड़ी शोचनीय है; उत्पत्ति यथेष्ट नहीं होती; ब्रिटेन की भूमि में जितना उत्पन्न होता है, उसका आधा भी यहाँ नहीं उत्पन्न होता। ब्रिटिश किसानों और ब्रिटिश मज़दूरों को वर्तमान समय में खेती से जो मिलता है यदि उसका आधा ही मिले तो उनकी क्या अवस्था हो? भारतीय कृषक बड़ा घोर परिश्रम करते हैं। वे और उनके पूरे कुटुम्ब कृषि की देख-रेख में लगे रहते हैं। वे प्रातःकाल से काम करना आरम्भ करते हैं और प्रायः बड़ी रात तक काम करते रहते हैं। फिर भी उनके खेतों में प्रति एकड़ जो उत्पन्न होता है, वह ब्रिटिश-खेतों की प्रति एकड़ उपज का आधा भी नहीं होता। अब यदि कोई व्यक्ति सोचे कि इसी उत्पत्ति से उन्हें खेती के कर, नमक के कर और कुछ दूसरे कर देने पड़ते हैं तो उसे भारतीय किसानों को इस शोचनीय आर्थिक दशा पर आश्चर्य न होगा। आश्चर्य इसी में है कि भारत के कृषक जी रहे हैं। उनके जीवित रहने का भी कारण यह है कि उन्होंने कम से कम आय से निर्वाह करना सीख लिया है।

"घास-फूस या ताड़ की पत्तियों से छाया एक मिट्टी का घर उसका महल है। उसका बिछौना पौधों के डंठल या पुआल का बना होता है जो पृथ्वी से मुश्किल से ६ इञ्च ऊँचा होता है। चटाई हुई तो इस बिछौने पर डाल लेता है, नहीं तो यही सोता है। उसके घर में न दरवाजा होता है न खिड़कियाँ। खाना पकाने का या आग जलाने का छोटा सा स्थान बाहर रहता


  1. सुखी भारत, पृष्ठ ३९।
  2. वही पुस्तक, पृष्ठ ३६-३७।