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विषय-प्रवेश

कोई भी पाठक इन स्वीकारोक्तियों को, जो डुबोइस की पुस्तक और उसके नये रूप 'मदर इंडिया' को सर्वथा असत्य ठहरानेवाली हैं, कभी भुला नहीं सकता।

ईसाई मिशनरियों का हिन्दुस्तान में धर्मप्रचार का ढङ्ग इस बात से जाना जा सकता है कि डुबोइस के पहले (सत्रहवीं सदी में) राबर्ट डे नोबिली नामक एक बड़ा ईसाई मिशनरी जो ब्राह्मण का सा जीवन व्यतीत करके, जनेऊ धारण करके दक्षिण प्रान्त में डुबोइस की ही भांति प्रचार कर रहा था, यहाँ तक बढ़ा कि उसने अपनी धूर्तता से एक पाँचवाँ वेद रचा और उसमें ईसाई धर्म की बातें भर दी*[१]

मिस्टर नाटराजन एबे के बारे में कुछ और भी बातें लिखते हैं :—

"जिस समय एबे भारतवर्ष में था उसी समय अँगरेज़ों और फ़्रांसी- सियों में बड़ी प्रतिद्वन्द्विता चल रही थी। एबे ने 'भारत की जो सेवाए की थीं, उनके बदले में भारत छोड़ते समय उसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पेन्शन दी। इससे ईस्ट इंडिया कम्पनी की निःस्वार्थ दयालुता का या स्वयं एबे की सुन्दर देश-भक्ति का परिचय मिलता है।"

एने अपने ही कथनानुसार अपराधी ठहरता है। श्रीयुत नाटराजन क्या ख़ूब शंका करते हैं :— “मान लीजिए कि इसी उद्देश्य से कोई हिन्दू कुछ वर्ष के लिए अमरीका जाकर रहे और 'मैमन-पूजा' की बुराइयों का झूठा चिन्न चित्रित करे ताकि उसकी कुरूपता से वेदान्त की ख़ूबियों और पूर्णताओं का प्रभाव पड़े तो क्या अमरीका की सभ्यता और संस्कृति का कोई गम्भीर विद्यार्थी उसे इस विषय पर प्रमाणस्वरूप मानेगा? इस सत्य और डंके की चोट पर कही गई बात को पढ़ लेने के बाद किसी विदेशी को हिन्दुओं के प्राचरण और रस्म-रिवाजों के सच्चे वर्णन खोजने के लिए एबे की पुस्तक को सबसे अन्त में सहारा लेने की वस्तु समझना चाहिए।


  1. * विशप ह्वाइट हेड लिखित 'इंडियन प्राबलेम्स' (कान्सटेबुल) पृष्ठ, १७२