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बुराइयों की जड़—दरिद्रता


है। उनकी अधारता और भी अधिक बढ़ गई है। लगातार भूमि का मूल्य बढ़ानेवाली पद्धति में परिवर्तन नहीं किया गया। नमक का कर यद्यपि कुछ घट गया है परन्तु यह गरीबों को अब भी लूट रहा है। भूख और वे रोग जो भूख से उत्पन्न होते हैं, बजाय घटने के बढ़ते ही जा रहे हैं। दक्षिण के कृषक इस समय जितने गरीब हो रहे हैं वैसे गरीब शायद संसार में कहीं के किसान न होंगे। धन-सम्बन्धी नियमों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। भारतवर्ष के निवासियों के व्यवसाय और परिश्रम के बलिदान पर जिस अर्थ-नीति के द्वारा अँगरेज़ी व्यापार और अँगरेज़ों को लाभ पहुँच रहा है यह ज्यों की त्यों बनी है। [पचीस वर्ष पहले जो बुरा था वह अब बहुत बुरा हो गया है] यह सब होने हुए भी भारतवासियों की खुराक उसी प्रकार विदेशियों के मुँह में जा रही है। चारों तरफ़ प्रकट रूप से फैले हुए अकाल और महामारियां आदि ऐसी समस्याएँ हैं जो किसी प्रकार के सरकारी अङ्क-चक्रों-द्वारा यों ही नहीं टाली जा सकतीं। (कोष्ठक के शब्द हमारे हैं।)"

१८८८ ईसवी में लार्ड डफरिन ने भारतवासियों की आर्थिक दशा की गुप्त-रीति से जाँच कराई थी। इस जांच का फल सर्व-साधारण को कभी नहीं बतलाया गया। परन्तु मिस्टर डिग्बी ने अपने चिरस्मरणीय ग्रन्थ में, संयुक्त-प्रान्त और पञ्जाब के सम्बन्ध में जो विवरण उपस्थित किये थे, उनके उद्धरण प्रकाशित किये थे। भारतवर्ष के अर्थ-शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए ये विवरण बड़े महत्त्व के हैं। हम संक्षेप में उनका उल्लेख कर सकते हैं। जो विवरण अत्यन्त दिलचस्प हैं उनमें एक ४ अप्रैल १८८८ को श्रीयुन ए॰ एच॰ हरिंगटन कमिश्नर द्वारा तैयार किया विवरण भी है।

श्रीयुत हरिंगटन ने अवध के गज़ेटियर के संग्रहकर्ता श्रीयुत्त बेनेट का मत उद्धृत किया है और उन्हें—'अवध की निम्न से निम्न श्रेणियों की दशा के सम्बन्ध में भी निराशावाद से बिलकुल परे' एक अफ़सर बतलाया है।

हरिंगटन ने लिखा है—'दुःख और अधःपतन के अत्यन्त गहरे गड्ढे में जो जातियां जा पहुंची हैं वे कोरी और चमारों की जातियां हैं। वे सदैव भूखों मर जाने के निकट पहुँची रहती हैं।' अवध में इन जातियों की जन-संख्या १० या ११ प्रतिशत है। इसके पश्चात् श्रीयुत हरिंगटन ने दन लेखों से उद्धरण