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बुराइयों की जड़—दरिद्रता

अपना बड़ा भाग्य समझते हैं परन्तु यह भी ईंधन की कमी और उसका दाम बढ़ जाने के कारण उन्हें नसीब नहीं होता।"

बाँदा के कलेक्टर मिस्टर ह्वाइट लिखते हैं:—

"निम्न श्रेणी के बहुसंख्यक लोगों की शारीरिक अवस्था देखने से यह साफ़ साफ़ मालूम हो जाता है कि या तो वे आधा पेट खाना खाकर रहने हैं या अपनी बाल्यावस्था में अकाल की भीषणता का कष्ट भोग चुके हैं; क्योकि यदि कोई भी कम आयु का जीवधारी अपनी शारीरिक बाढ़ के समय में भोजन न पाने के कारण अपना स्वास्थ्य नष्ट कर लेता है तो पश्चात उसे कितना ही पौष्टिक भोजन क्यों न मिले उसकी अवस्था सुधर नहीं सकती।"

गाज़ीपुर के कलेक्टर मिस्टर रोज लिखते हैं:—

"जहां कृषक के पास औसत दर्जे की भूमि होती है, उस पर ऋण का भार नहीं रहता, जहां कर अधिक नहीं होता और उत्पत्ति भी औसत दर्जे की हो जाती है, संक्षेप में जहाँ सब परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं वहीं सब बात को देखते हुए उसकी दशा सुख की होती है। परन्तु अभाग्य से ये अनुकूल परिस्थितियां सदा प्राप्त नहीं होती। साधारणतया अधिकांश ऋण में भी डूबे रहते हैं।"

झांसी डिवीज़न के कमिश्नर मिस्टर बार्ड कहते हैं:—

"इस डिवीज़न का एक अल्प भाग सदैव आधा पेट भोजन पाता है।"

सीतापुर डिवीज़न के स्थानापन्न कमिश्नर मिस्टर बेज बिना किसी सिलसिले के २० कुटुम्बों की जांच का विवरण इस प्रकार देते हैं:—

"प्रतिपुरुष की कमाई प्रति वर्ष १९ शिलिंग २ पेंस या ५ डालर से कुछ कम पड़ती है।"

"प्रतिबालक की कमाई ९ शिलिंग ६ पेंस या + डालर से कुछ कम पड़ती है।"

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