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दुखी भारत

"यदि यह स्मरण रहे कि भारतीय जनता की आय का औसत प्रति-मनुष्य प्रतिदिन डेढ़ पेंस से भी कम पड़ता है और पूरी जनसंख्या का २५ प्रतिशत इससे भी वञ्चित रह जाता है तो साधारण समय में भी रोज़ कमाने और रोज़ खानेवाले पञ्जाबी कृषकों की दशा का कुछ अनुमान किया जा सकता है। यदि परिस्थिति ऐसी है तो, अकाल की बात जाने दीजिए, साधारण तङ्गी के समय में भी उनकी, बिना ऋण लिये, कर चुकाने की असमर्थता और भूखों मरते मरते बच जाने की दशा सिद्ध करने के लिए प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है।"

कलकत्ता-विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के भूतपूर्व अध्यापक श्रीयुत मनोहरलाल जुलाई १९१६ के 'इंडियन जनरल आफ़ इकनामिक्स' नामक समाचार पत्र में एक लेख खिलते हुए एक स्थान पर कहते हैं:––

"दरिद्रता, हमें पीस डालनेवाली दरिद्रता ही हमारे अर्थशास्त्र के सामने एक भीषण समस्या है; और इसलिए राष्ट्रीय समस्या भी यही है। इन पंक्तियों के लेखक की समझ में यह हमारे जन-समुदाय की मूर्खता और निरक्षरता से भी अधिक विकराल रूप धारण किये हुए है। इस दरिद्रता से हम नाना प्रकार के रोगों के शिकार बने हुए हैं, हमें प्लेग और दुर्भिक्ष निगले जा रहे हैं और इससे हमारी उन्नति में पग पग पर बाधा पड़ रही है......

"यह उनकी शारीरिक मृत्यु को छोड़ कर और सब प्रकार की मृत्यु का बिल्कुल ठीक चित्र है। इससे मानुषी सभ्यता के किसी भी समुदाय का बोध नहीं हो सकता।"

श्रीयुत मनाहरलाल अब पञ्जाब-सरकार के एक सदस्य हैं और इस पद पर पञ्जाब के गवर्नर-द्वारा नियुक्त हुए

११ जनवरी सन् १९१७ ईसवी को श्रीयुत एस॰ पी॰ पैत्रो ने, जिन्होंने मदरास-प्रान्त की आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में जाँच की थी, मदरास के गवर्नर के सभापतित्व में हुई एक सभा में अपना एक निबन्ध पढ़कर सुनाया था। नीचे हम उस लेख का एक अंश उद्त करते हैं।

"श्रीयुत पैत्रो ने देखा कि एक विशेष गाँव के कृषकों के बजट में प्रतिवर्ष २९ रुपये ९ आने की कमी पड़ती जाती थी और उनके लिए प्रतिदिन