पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६२
दुखी भारत

से पूर्व इस बात पर बड़ा जोर दिया था कि उन्नति के समस्त उद्योगों को तुरन्त कृषकों का पेट भरने की ओर केन्द्रीभूत करना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि जन-साधारण के खाली पेटों को भरने के लिए क्या उपाय किया जाय, डाकृर मैन ने कहा––बहुत कुछ तो वे लोग स्वयं ही कर सकते हैं। उन्हें काम में जुट जाना चाहिए। कोई ऐसा देश उन्नति की आशा नहीं कर सकता जिसकी जनसंख्या का अधिकांश भाग वर्ष में ६ मास काहिल बना बैठा रहे। लोगों को सूखे मौसम में कुछ न कुछ काम मिलना चाहिए। परवाह नहीं, आमदनी चाहे जो हो। अन्य मार्गों में मिस्टर गान्धी चाहे जितना भटक गये हों, परन्तु चर्खे का प्रचार करने में वे भारतवर्ष की दरिद्धता की जड़ तक पहुँच गये हैं। इससे कोई मतलब नहीं कि चखें से केवल कुछ ही थानों की आय होती है। इसलिए समस्या के इस पहलू की और सरकार को, वह यदि वास्तव में देश की उन्नति चाहती है, 'अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए। और उन्होंने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि इतने समय के बीत जाने के पश्चात् अब कहीं जाकर सरकार ने इस समस्या में गम्भीरता के साथ हाथ लगाया है।"

इस देश के लोगों को डाकर मैन का अन्तिम सन्देश निम्नलिखित शब्दों में दिया गया था:––

"डाकृर मैन ने कहा––'मुझे इस बात की बड़ी आशा थी कि बम्बई प्रान्त की आर्थिक स्थिति बहुत ऊँची हो जायगी और इस काम में प्रजा भी भाग लेगी। परन्तु वे लोग जिनके पेट खाली हैं ऐसी अच्छी दशा प्राप्त करने के लिए कोई उद्योग नहीं कर सकते! इसलिए इस देश के लोगों को, समस्त सामाजिक काव्य-कर्ताओं को, और उनको जिनके हाथ शासन की बागडोर है, मेरा अन्तिम सन्देश यह है कि सब मिलकर कोई ऐसा उपाय निकाल जिससे कृषकों को पेट भर भोजन मिलने लगे।"

इस समस्या की कठिनाई डाकृर मैन के ऊपर दिये गये मोटे शब्दों से स्पष्ट हो जाती है। यह एक ऐसे अँगरेज़ की भाषा है जो गत बीस वर्षों तक ग्राम्य-जीवन के चिकट-सम्पर्क में रहा है और जो उस नौकरशाही का एक अङ्ग रहा है जो इस देश पर शासन करती है। यह किसी 'अभिशापित' स्वराजिस्ट, या होम-रूलर या अग्नि-भक्षक की भाषा नहीं है बल्कि नौकरशाही के एक उच्च पदाधिकारी की भाषा है।