पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६४
दुखी भारत

और धर्म-सम्बन्धी व्यर्थ बातों से अधिक महत्त्वपूर्ण है जिनका कि वह अपनी पुस्तक में वर्णन करती है। अमरीकन कारीगर स्वभावतः यह जानने की उत्सुकता प्रकट करेंगे कि भारत अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का आधे से अधिक भाग ग्रेटब्रिटेन से क्यों खरीदता है और भारतवर्ष में जो विदेशी माल बिकता है उसमें अमरीका का भाग केवल ६ प्रतिशत ही क्यों होता है। और कदाचित् अमरीकाबासी यह भी जानना चाहेंगे कि भारतवर्ष का व्यापार करीब करीब पूर्णरूप से ब्रिटिश तक ही परिमित क्यों है? मिस मेयो भारतीय अर्थशास्त्री के मुँह से कहलाती है––'हम चाय की बड़ी बड़ी फसलें पैदा करते हैं और लगभग सब भारतवर्ष के बाहर चली जाती हैं। यह इस देश को दरिद्र करनेवाला दूसरा निकास है। इसके उत्तर में वह पूछती है––'तुम अपनी चाय बेचते हो या यों ही लुटा देते हो?' इस पर कल्पित भारतीय अर्थशास्त्री बड़बड़ाता है––ओह! हाँ, परन्तु चाथ, वह तो तुम देखती हो, नदारत है।' हम पूछते हैं कि ऐसा कौन-ला भारतीय अर्थशास्त्री है जो इस विषय को ऐसे बेढङ्गे तौर से उपस्थित कर सकता है––और फिर मिस मेयो के अतिरिक्त इसका इतनी सादगी के साथ खंडन भी कौन कर सकता है?

सेना-विभाग का व्यय

सेना-विभाग के व्यय के सम्बन्ध में मिस मेयो ने अपने जो विचार प्रकट किये हैं ये भी वैसे ही हैं जैसे कि उसके अर्थशास्त्र-सम्बन्धी साधारण ज्ञान से आशा की जा सकती है। वह इस विषय को नीचे लिखे अनुसार संक्षेप में स्वयं उपस्थित करती है और स्वयं ही उसका खण्डन भी कर डालती है (मदर इंडिया––पृष्ट ३५१-२):––

राजनीतिज्ञ महाशय कहते हैं––"सेना आवश्यकता से अधिक हैं!"

"क्या यह उस कार्य के लिए भी बहुत अधिक है जो इसे आपकी रक्षा और शान्ति के लिए करना पड़ता है?"

"मैं नहीं कह सकता। उस विषय पर मैंने ध्यान नहीं दिया। परन्तु कुछ भी हो, भारतीय कर की आय का एक बड़ा भाग तो इसमें स्वाहा हो जाता है।" प्रायः ऐसी ही बातें लोग कहते हैं।