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भारत के धन का अपव्यय

कथा के रूप में यह वक्तव्य क्षम्य हो सकता है। परन्तु अर्थशास्त्र की समालोचना के रूप में यह बड़ा निराशा-पूर्ण है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होने 'इस बात पर गौर किया है।' मिस मेयो ने उनके उपस्थित किये गये प्रश्न की परीक्षा क्यों नहीं की?

हाल में इस सम्बन्ध में जो परीक्षाएँ की गई हैं उनमें बम्बई विश्व- विद्यालय के राजनैतिक अर्थशास्त्र के अध्यापक श्रीयुत के॰ टी॰ शाह की परीक्षा का उल्लेख किया जा लकता है। इस विषय पर उन्होंने 'भारतवर्ष का धन और उसकी कर-सहन करने की शक्ति[१] नामक एक आदर्श पुस्तक लिखी है। मिस्टर शाह ने १९२३ ईसवी में इञ्चकेप कमेटी के सामने उपस्थित करने के लिए एक विवरण तैयार किया था। उस विवरण को भी उन्होंने अपनी पुस्तक में संक्षेप रूप से दे दिया है।

सबसे पहली बात तो यह है कि क्या यह कहना उत्तम अर्थशास्त्र का धोतक है कि रक्षा के लिए जो व्यय किया जाता है उसका देश की कर सहन करने की योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है? रक्षा के लिए जो व्यय किया जाता है उसे भी अन्य व्यय की भाँति राष्ट्रीय थैली की शक्ति को दृष्टि में रख कर करना चाहिए। दूसरे पृष्ट पर प्रोफेसर शाह द्वारा तैयार किया गया एक अङ्क- चक्र दिया जाता है। इसे उन्होंने स्टेट्समैन की वार्षिक पुस्तक (१९२२) से तैयार किया था। इससे इस विषय पर बड़ा सुन्दर प्रकाश पड़ता है।

इससे भी अधिक ध्यान देने योग्य और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतवर्ष, सेना पर किये गये व्यय को 'सम्पत्ति का नाश' केवल इसी लिए नहीं समझता कि यह असह्य और अधिक है किन्तु इसलिए भी कि भाग ब्रिटिश सैनिकों के लिए और ब्रिटेन में व्यय किया जाता है। इंगलैंड में सेना-विभाग पर कुल व्यय इस प्रकार किया गया है––


१९२२-२३ में
१९२३-२५ „
१९२४-२५ „


१४·१६ करोड़ रुपये।
१४·२० „ „
१५·०३ „ „


  1. लन्दन, पी॰ ए॰ किंग एंड सन्स, १९२४।