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दुखी भारत

गेहूँ-ग्रेटब्रिटेन भारतवर्ष के गेहूँ का अधिकांश भाग ही नहीं खरीदता बरन कभी कभी भारतवर्ष से जितना गेहूँ बाहर जाता है, वह सब ग्रेटब्रिटेन ले लेता है। १९०८-९ ईसवी तक यही होता रहा। १९०९-१० ई॰ में भारतवर्ष से ८५,००,००० पौंड का गेहूँ बाहर भेजा गया था। इसमें से ग्रेटब्रिटेन ने ७०,००,००० पौंड का खरीदा। १९११-१२ में ८८,९८,९७२ पौंड का गेहूँ बाहर भेजा गया। इसमें ग्रेटब्रिटेन ने ६७,४१,१९० पौंड का लिया। १९१२-१३ में १,१७,९५,८१६ पौंड का गेहूँ बाहर भेजा गया था। इसमें से ग्रेटब्रिटेन ने ८३,८०,४२२ पैड का ख़रीदा था।

जौ और बीज-भारतवर्ष के जो की सबसे अधिक खपत ग्रेटब्रिटेन में होती है। बीज भी यह अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक खरीदता है।

चाय-भारतवर्ष से जितनी चाय बाहर भेजी जाती है, उसका दो-तिहाई से अधिक ग्रेटब्रिटेन लेता है।

चमड़ा-इसी प्रकार ग्रेटब्रिटेन चमड़ा भी औरों की अपेक्षा भारतवर्ष से सबसे अधिक खरीदता है।

इससे मिस मेयो के इस कथन का खोखलापन प्रकट हो जाता है कि ग्रेटब्रिटेन को भारत से कोई लाभ नहीं है।