पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८
दुखी भारत


और क्या सामाजिक दशा थी। पर तुलनात्मक कार्य विरोध बढ़ानेवाले होते हैं।"

मिस मेयो अपने सहयोगी और हिन्दुओं के शत्रु डुबोइस के अनुभवों का भी सावधानी के साथ प्रयोग करती है। इसका दूसरा उदाहरण देखना चाहें तो पाठक डुबोइस की किताब से लिये गये उसके हिन्दुओं की शिक्षा-व्यवस्था-सम्बन्धी उद्धरण को असली से मिला कर पढ़ें। डुबोइस को वह इस प्रकार कहते हुए उपस्थित करती है:—

"डुबोइस कहता है—'ब्राह्मण लोग इस बात को खूब समझते थे कि ज्ञान उन्हें दूसरी जातियों पर नैतिक प्रभुता जमाने में कितना सहायक होता है। इसलिए उन्होंने दूसरी जातियों को, उसके पास तक फटकने देने से भी, यथाशक्ति पूरी सावधानी के साथ रोक कर उसे एक रहस्य की वस्तु बना दिया।"

जिस अंश से यह अवतरण उद्धृत किया गया है उसके प्रथम दो वाक्य छोड़ दिये गये हैं; क्योंकि उनमें हिन्दुओं की इस बात की बड़ी प्रशंसा की गई थी कि वे बहुत प्राचीन समय से विद्या प्राप्त करते चले आ रहे हैं और ब्राह्मण तो 'सदैव से इसके भण्डार ही रहे हैं।'[१]

मिस मेयो प्रकट रूप से इस प्रकार के 'हानिकारक' वक्तव्य को अपनी पुस्तक में नहीं आने देना चाहती थी। ऊपर उद्धृत किये गये वर्णन के बाद एक दूसरी उक्ति उसी पुस्तक से दी गई है। मिस मेयो ने उसे इस प्रकार रक्खा है:—

"मैं इस बात को नहीं मानता कि वर्तमान समय के ब्राह्मण 'लिकर्गस' और 'पिथागोरेस' के समय के अपने पूर्वजों से किसी अंश में अधिक शिक्षित हैं। इस लम्बे समय में अनेकों असभ्य जातियाँ अज्ञानता के अन्ध-


  1. डुबोइस, आक्सफोर्ड संस्करण पृष्ठ २७६