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दुखी भारत


से कुछ लाभ हो जाता है। परन्तु यह फल प्राप्त करने के लिए उन्हें रेल-पथ-निर्माण के लिए वे बड़ी बड़ी रकम देनी पड़ी जिनका कि उल्लेख कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें तङ्गी के दिनों में एक बड़ी बाहरी सहायता का व्यय भी संभालना पड़ता है। आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के सब पहलुओं पर विचार करके देखा जाय तो क्या यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि इस देश के हाथ से प्राय का एक भारी साधन निकल गया है? यदि कल भारत में विदेशों से कपड़ा थाना और भारत से विदेशों को गल्ला जाना बन्द हो जाय, तो भारत ही फायदे में रहेगा। हाँ, भारत सरकार के होश-हवास गुम हो जायँगे। वास्तव में दोनों के स्वार्थ एक-रूप नहीं हैं। भारत सरकार इस समय व्यापार के घाटे को कम करने के लिए गेहूँ की निकासी बढ़ाने की चेष्टा कर रही ह; परन्तु इसका परिणाम यह होगा कि भारतवर्ष में खाद्यपदार्थ महँगा हो जायगा। अब हम मिस्टर हंटर के इस कथन का तात्पर्य समझ सकते हैं कि वर्तमान समय में ब्रिटिश भारतीय जनता के पाँच भाग में २ भाग की ऐसी उन्नति है जैसी देशी राजाओं के राज्य में पहले कभी नहीं हुई थी। ब्रिटिश भारत की जनता का दूसरा भाग यथेष्ट पैदा कर लेता है पर क्रमशः उसकी आय घटती जा रही है। और भाग या ४ करोड़ मनुष्य आधा-पेट खाकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। और मिस्टर केयर्ड के अनुसार १० ही वर्ष में २ करोड़ ऐसे मनुष्यों की और वृद्धि हो जायगी जिन्हें भोजन नहीं मिलेगा। तब, क्या इस बात पर दृढ़ रहा जा सकता है कि रेलों पर बड़ी बड़ी पूँजियाँ व्यय करने से भारत की दशा में सुधार हुआ है?

"परन्तु इन बातों के विरोधी उत्तर देते हैं कि अकाल के दिनों में भूखे मरते प्रान्तों को रेलों-द्वारा जो भोजन पहुँचाया जाता है उसको तो आप भूले ही जा रहे हैं। यदि देश में रेले न होती तो गत अकाल के समय में मदरास, बम्बई और सीमा-प्रान्त के निवासियों की क्या दुर्गति होती? मेरा उत्तर है-उनकी क्या दशा हो गई? यह सच है कि रेलों से अनाज पहुँचा। परन्तु पहले ये रेलें अनाज ले भी तो गई थीं। उसी को ये चौगुने मूल्य पर वापस ले आईं। और सरकार को कृषकों को इस योग्य बनाने में कि वे इसे खरीद सके लाखों रुपये व्यय करने पड़े, सो ऊपर से। और तब भी जो दिल दहलानेवाली मृत्युएँ हुई उनको वह रोक नहीं सकी।

"दुर्दिनों का सामना करने के लिए यहाँ के निवासियों में अतीत काल से क्या प्रथा चली आती थी? बही जो मिस्र देश में जोसेफ़ की थी-अन्न इकट्ठा करके रखना। मैसूर के अकाल के सम्बन्ध में वहाँ का सरकारी वक्तव्य क्या कहता है? सुनिए-पहले, वर्षा न होने से देश को कष्ट उठाना पड़ता था, इसमें सन्देह नहीं, परन्तु रागी-एक प्रकार का मोटा अन्न जो पृथ्वी