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दुखी भारत

यह सब लोगों को जीवित रखने के लिए किया गया। और फिर भी अकाल में ५० लाख मनुष्य मर गये।"

सार्वजनिक सेवा-वृत्तियाँ

इस अध्याय को समाप्त करने से पूर्व सार्वजनिक वृत्तियों के सम्बन्ध में कुछ बातें और अ्ङक उपस्थित कर देना उपयुक्त होगा। इस संसार में भारत के अतिरिक्त ऐसा एक भी देश नहीं है जहाँ उच्च सरकारी कर्मचारियों को इतने बड़े बड़े वेतन दिये जाते हैं। और जिसकी सार्वजनिक सेवकों की बचत का अधिकांश भाग देश के बाहर चला जाता हो।

भारतीय ब्रिटिश सरकार प्रायः 'नौकरशाही' के नाम से पुकारी जाती इसमें सन्देह नहीं कि समस्त देशों में किसी न किसी अंश में कुछ 'नौकरशाही' करनी ही पड़ती है। परन्तु भारतवर्ष में––लायर्ड जार्ज के शब्दों में––ये नौकरियाँ ब्रिटेन के प्रभुत्व का लोहे का ढाँचा निर्माण करती हैं। नौकरशाही के 'आई॰ सी॰ एस॰' और दूसरे अङ्ग केवल क़ानूनों का पालन ही नहीं करते बरन वे ही अधिकांश में इन क़ानूनों को बनाते भी हैं

इसलिए भारतवर्ष में बड़ी बड़ी नौकरियाँ अँगरेज़ों को बहुत अधिक दी जाती हैं। इसका अर्थ यह है कि ब्रिटिश के 'लौंडों' को तो जीवन में अच्छे साधन प्राप्त हो जाते हैं और भारतवर्ष के सार्वजनिक कोष पर तबाही आ जाती है। केवल ब्रिटिश लौड़ों को लाभ पहुँचाने के लिए शासन का व्यय इतना अधिक बढ़ा दिया गया है। नौकरशाही के ब्रिटिश लाड़लों के लिए प्रायः नई नई नौकरियों की सृष्टि की जाती है। और भारतीय कोष जितना सहन कर सकता है उससे कहीं अधिक वेतन उन्हें दिया जाता है। ये नौकरियाँ वास्तव में भारत के धन की 'अपव्यय-स्वरूप' हैं। इन पर भारत को इतना अधिक धन तो व्यय करना ही पड़ता है, इनकी आय का अधिकांश भाग भारत के बाहर व्यय होता है। पेन्शन के रूप में जो बड़ी बड़ी रक़में बाहर भेजी जाती हैं उनसे देश को और भी बड़ी भयङ्कर हानि होती है।