पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८२
दुखी भारत


दोनों जगह एक ही समय परीक्षाएँ हो जाया करें। इस सिद्धान्त को पार्लियामेंट ने स्वीकार कर लिया था पर इसे व्यवहार में लाने का कोई उद्योग नहीं किया गया। मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपेार्ट ने इस बात की घोषणा की थी कि 'उत्तर-दायित्व-पूर्ण शासन की सफलता की नवीन नीति अधिकांश में वहीं तक काम कर सकती है जहां तक शासन के प्रत्येक विभाग में भारतीयों का प्रवेश सम्भव हो सके। इस पर तुरन्त ब्रिटिश के लौंडों ने चिल्लपों मचाना प्रारम्भ कर दिया। और अब व्यवस्थापिका सभा के विरोध करने पर भी सरकार ने 'ली कमीशन' के प्रस्तावों को स्वीकार करके अपनी वास्तविक नीति को प्रकट कर दिया है।

१९१४ से लेकर १९२४ तक में अर्थात् १० वर्षों में सार्वजनिक नौकरियों के वेतन और भत्तों में बहुत अधिक वृद्धि कर दी गई है। और पेंशन के लिए उदार नियम बना दिये गये हैं तथा मार्ग-व्यय की व्यवस्थायें कर दी गई हैं, सो ऊपर से। इंचकेप कमेटी के अनुसार केन्द्रीय कोष से जिन कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है उनकी कुल संख्या (रेलवे स्टाफ़ के अतिरिक्त) १९१३-१४ में ४,७४,९६६ थी, १९२२-२३ में यह बढ़कर ५,२०,७६२ हो गई—लगभग १० प्रतिशत की वृद्धि हुई। ३८४ पृष्ठ पर दिये गये अङ्क-चक्र से यह प्रश्न और भी भली भांति समझ में आ जायगा।

विशेष वेतन और भत्ते आदि में जो अधिक व्यय हुआ है उस पर ज़रा ध्यान दीजिए। ली कमीशन की सम्मति में यह यथेष्ट नहीं था इसलिए उसने चारों तरफ़ वृद्धि करने का प्रस्ताव किया।

ली-शासन-पद्धति के अनुसार प्रथम वर्ष में जो वृद्धि हुई उसका अनुमान नीचे लिखे अनुसार किया जाता है—

वेतन और हुंडी का व्यय... आई॰ सी॰ एस॰ १८.६ लाख
आई॰ पी॰ एस॰ १२.७ "
आई॰ एम॰ एस॰ (सिविल) ७.० "
आई॰ ई॰ एस॰ (पुरुष) ३.३ "
आई॰ एस॰ ई॰ १०.९ "
आई॰ ए॰ एस॰ .८ "
आई॰ वी॰ एस॰ .८ "

योग ५७.१ "