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अट्ठाईसवाँ अध्याय
भेद-नीति

हाल के हिन्दू-मुसलिम दङ्गों के कारण मिस मेयो ने हमारी हँसी उड़ाई है। यह सच है कि गत पाँच वर्षों से हिन्दू मुसलमान बड़ी बुरी तरह लड़ रहे हैं। संक्षेप में परिस्थिति इस प्रकार है।

१९१९ ईसवी में जब रौलट एक्ट पास हुआ था तब हिन्दू मुसलमान दोनों ने मिलकर एक साथ सरकार का विरोध किया था। मार्शल ला के समय की सामयिक फ़ौजी अदालतों में पंजाब के नेताओं पर एक अभियोग यह भी लगाया गया था कि वे हिन्दू-मुसलमानों में मेल बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं। इस बात के अपराधी ठहराये गये थे कि उन्होंने ब्रिटिश-सरकार का तो तख़्ता उलट देने के लिए एका किया था। १९२० और १९२१ में समस्त भारतवर्ष के हिन्दू-मुसलमानों ने असहयोग आन्दोलन में एक दूसरे का साथ दिया। यह देखकर विदेशी नौकरशाही की आँख में फोड़ा हो गया। हिन्दू-मुसलमानों का मेल भङ्ग करके असहयोग आन्दोलन को मार डालने के लिए अनेक उपाय किये गये। इसमें सरकर को निर्वाचित संस्थाओं के लिए हिन्दू-मुसलमानों का निर्वाचन-क्षेत्र पृथक् पृथक् कर देने से बड़ी ठोस सहायता मिली। पृथक् निर्वाचन के साथ साथ सार्वजनिक नौकरियों में सरकार ने साम्प्रदायिक पक्षपात की भी नीति बर्तनी आरम्भ कर दी। विशेष कर हिन्दुओं को दवाया गया और उन्हें सरकारी लोहे का अनुभव कराया गया।

फूट उत्पन्न करके राज्य करने की नीति समस्त साम्राज्यों का अमोघ अस्त्र है। भारतवर्ष में ब्रिटिश-सरकार की बराबर यही नीति रही है। ब्रिटिश-अधिकारियों के लेखों से यही निष्कर्ष निकलता है। आरम्भ में उनकी पुकार यह थी–'मुसलमानों को दबाना चाहिए।' अब है–'उन्हें मिला लेना

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