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दुखी भारत

चाहिए और राष्ट्रवादियों के विरुद्ध उनका प्रयोग करना चाहिए। यह भागे आनेवाले उद्धरणों से स्पष्ट हो जायगा[१]

४ अक्टूबर १८४२ ईसवी को लाई एलेनबरा ने, जो उस समय भारतवर्ष के गवर्नर जेनरल थे, काबुल और गज़नी को परास्त करने के पश्चात् क आफ़ वेलिंगटन को एक पत्र में लिखा था:––

"मुसलमान लोग अफगानिस्तान में हमारी असफलता कहाँ तक चाहते थे इसका मुझे विश्वास न होता यदि मुझे चे बातें मालूम न हो जाती जिनसे यह सिद्ध होता है कि जो मुसलमान सर्वथा हमारे अधिकार में हैं––उनमे भी हमारे विरुद्ध यही भाव विद्यमान है।

"...इसके विरुद्ध हिन्दू प्रसन्नता प्रकट कर रहे हैं। मैं समझता हूँ कि अब के विरोध का हमें निश्चय है तब ६० के उत्साहपूर्ण सहयोग से, जो हमारे भक्त भी हैं, लाभ न उठाना बड़ी भूर्खता होगी।"

एलेनबरा ले १८ जनवरी १८४३ ईसवी में बेलिंगटन को फिर लिखा था:––

"मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि वह जाति (मुसलमान) सिद्धान्तरूप से हमारी शत्रु है। इसलिए हमारी वास्तविक नीति यह होनी चाहिए कि हम हिन्दुओं को अपनावें।

मुसलमानों को अँगरेज़ों का कोप-भाजन क्यों बनना पड़ा ? यह बात १८५८ में प्रकाशित एक पुस्तिका[२] में बतलाई गई थी। इसे बङ्गाल सिविल-


  1. जनवरी १९२८ के मार्डन रिब्यू (कलकत्ता) में डाकृत जे॰ टो॰ सन्डरलेंड का 'हिन्दू मुस्लिम दंगे' शीर्षक लेख देखिए। उसी पत्थर की सितम्बर १९२५ की संख्या में डाकृर बी॰ डी॰ बसु का 'इसलाम दबाया जाना चाहिए' शीर्षक लेख देखिए।
  2. 'गत भारतीय विद्रोह और हमारी भविष्य नीति' पृष्ठ १३-१७। बसु द्वारा उद्धत।