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दुखी भारत

आरम्भ में क्या परिस्थिति थी? इसको स्पष्ट करने के लिए हम सरकारी कागजात से कुछ उद्धरण दे चुके हैं। इसके पश्चात् ही ब्रिटिश अधिकारियों को यह मालूम हुआ कि यदि हिन्दू अपनी गाड़ी निद्रा से एक बार जग पड़ेंगे तो फिर भारत में विदेशी शासन को कठिन कर देंगे। बोझा पूरा करने के लिए अल्पसंख्यक मुसलिम-जनता से विदेशियों ने मैत्री स्थापित करना आवश्यक समझा। गत शताब्दी के गत बीस वर्षों ने बड़ी के लटकन का यह हिलना भी देखा। सिविलियन एच॰ एच॰ थामस ने, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, यह निष्कर्ष निकाला था कि 'मुसलमान किसी भी राज्य की, जिसका धर्म उनसे भिन्न हो, अच्छी प्रजा नहीं हो सकते। कुरान की आज्ञा इसे सहन न करेगी।' परन्तु कुरान की आज्ञा को लेकर दूसरे प्रकार का उद्योग क्यों न किया जाय? इसलिए हन्टर ने एक नई समस्या पर विचार करना आरम्भ किया कि क्या मुसलमान अच्छे मुसलमान भी बने रह सकते हैं और महारानी विक्टोरिया की अच्छी प्रजा भी बन सकते हैं?––और वह एक बिल्कुल भिन्न परिणाम पर पहुँचा!

'फूट उत्पन्न करो' वाला पुराना जूता अब भी वहीं है––हाँ अब यह दूसरे में है। इस अध्याय के कुछ उद्धरणों से इसलाम और मुसलमानों पर आघात पहुँचता है

इन उद्धरणों को हमने इसलिए नहीं दिया कि हम इनसे सहमत हैं बल्कि इसलिए दिया है कि हम संसार को यह बतलाना चाहते हैं कि आरम्भिक अँगरेज़ अफसरों की मुसलमानों के सम्बन्ध में क्या सम्मति थी, ताकि वर्तमान समय में वे हिन्दुओं के सम्बन्ध में जो सम्मतियाँ प्रकट कर रहे हैं––उनके मूल्य का अनुमान किया जा सके।

मिस मेयो लिखती है कि १९०६ ईसवी में बड़ी चख-चख मची।' उसका लक्ष्य मिन्टो मारले सुधार कानून की ओर है––जिसने भारतवर्ष में साम्प्रदायिक निर्वाचन को जन्म दिया था।

सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कहा था[१] कि साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की पद्धति भारतवर्ष को लार्ड मिन्टो से मिली। जो लोग यह सोचते हैं कि


  1. 'जागता हुआ राष्ट्र' (आक्स फोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, पृष्ठ २८३।