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भेद-नीति

था और न सुरक्षित रह सकता था। हिन्दू-मुसलिम बैमनस्य भी इस नीति का एक स्वरूप है। यह भी सत्य है कि इन दोनों जातियों की सामूहिक प्रतिद्वन्द्विता अँगरेज़ी राज्य के समय से आरम्भ हुई। अँगरेज़ों के शासन-काल स पूर्व अत्याचारी शासक समय समय पर प्रकट होते रहे हैं। धर्म पर विश्वास न करनेवालों पर कर लगाते रहे हैं या धर्म के जोश में गोहत्या करनेवालों को दण्ड देते रहे हैं। परन्तु हिन्दू और मुसलमान जनता––इस ज्ञान के वृक्ष का फल खाकर धर्म-वेता बनने से पूर्व––शान्ति के साथ पास पास उन्हीं देवस्थलों में ईश-पूजा करती थी।"

कर्जन की रचना––पूर्वी बङ्गाल––के शासक सर बेम्पफ़ील्ड फुलर ने अपने प्रायः उद्धृत किये जानेवाले साहित्यिक व्याख्यान में कहा था कि भारत-सरकार के दो पत्नियों हैं, हिन्दू और मुसलमान। इनमें मुसलमान उसकी 'प्रिय-पत्नी' है।

अभी गत वर्ष लाई ओलबियर ने, जो रामसे मैकडानेल के शासनकाल में भारत-मन्त्री थे, लन्दन के टाइम्स में लिखा था––

"कोई भी व्यक्ति, जिसका भारतीय समस्याओं से निकट-परिचय है यह अस्वीकार न करेगा कि अँगरेज़ अफ़सरों में मुसलमानों के प्रति प्रबल पक्षपात का भाव विद्यमान है। इसका कुछ कारण तो मुसलमानों के प्रति और अधिक सहानुभूति प्रकट करना है पर विशेष कारण हिन्दू राष्ट्रीयता के विरुद्ध पलरा भारी करना है।"

ऐसे उच्चाधिकारी की इस स्वीकारोक्ति से सर बेम्पफील्ड द्वारा अंकित किये गये 'प्रिय-पत्नी' के चित्र का पुनः स्मरण हो आता है।