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'पैग़म्बर के वंशज'

अपनी पुस्तक के ३०७ वें पृष्ट पर मिस मेयो लिखती है कि उसने पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के अनेक बड़े लोगों से बातें की हैं। आश्चर्य इस बात का है कि उसने किस भाषा में बातें की। क्योंकि उस प्रान्त में बहुत कम ऐसे बड़े लोग हैं जो अँगरेज़ी बोल सकते हैं। अस्तु, यह एक साधारण बात है। वह कहती है––'इस सम्बन्ध में सबके विचार समान प्रतीत हुए। इस समय समस्त प्रान्त सन्तुष्ट है और किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं चाहता।' परन्तु अखिल भारतीय मुसलिम लीग में प्रतिवर्ष सीमा-प्रान्त में विशेष सुधार की माँग का प्रस्ताव पास होता है। १९२६ ईसवी की बड़ी व्यवस्थापिका सभा में एक इसी प्रकार का प्रस्ताव उपस्थित किया गया था और पास भी हो गया था। मिस मेयो ने जिस 'प्रतिनिधि' का अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है उसके मुँह से भी यह कहलाया है कि––'यदि अँगरेज़ जाते हैं......तो तुरन्त यह देश नरक का रूप धारण कर लेगा। सबसे पहले बङ्गाली और उसकी समस्त जाति इस संसार से मिटा दी जायगी।' कोई बुद्धिमान् व्यक्ति ऐसी बात नहीं कह सकता था क्योंकि 'बङ्गाली और उसकी समस्त जाति' भारतवर्ष में ब्रिटिश के आने से हज़ारों वर्ष पूर्व भी विद्यमान थी। वार्तालाप निम्नलिखित शब्द-रत्नों के साथ समाप्त होता है––'परन्तु बिना अँगरेज़ों की सहायता के ऐसे हिन्दुओं के अतिरिक्त जिन्हें हम अपना गुलाम बना कर रखें और कोई हिन्दू भारतवर्ष में नहीं रह सकता।'

बेशक, मिस मेयो को अपने संवाददाता से––यदि वास्तव में कोई ऐसा संवाददाता मांस और रुधिर का हो या कभी रहा हो, क्योंकि उसने कोई नाम नहीं दिया है––यह पूछने का ध्यान नहीं आया कि अँगरेज़ों के आने से पूर्व युगों तक हिन्दू स्वतंत्र मनुष्य की भाँति जीवन व्यतीत करने की कैसी व्यवस्था करते थे? इससे भी अधिक उपयुक्त प्रश्न यह है कि हिन्दुओं ने पश्चिमोत्तर-प्रान्त ही नहीं, काबुल और कन्धहार भी, जो पूर्ण रूप से मुसलमाने के देश में हैं और अफगानिस्तान के राजा के राज्य में हैं, किस प्रकार जीतने की और उन पर शासन करने की व्यवस्था की थी। १८४९ ईसवी में पञ्चाब के ब्रिटिश राज्य में मिलाने के समय में सब प्रान्त सिक्खों के अधीन थे। इन प्रान्तों में सिक्खों के नाम पर अनेक बड़े बड़े नगर बसे हैं। उनमें एक हरिपुर