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'पैग़म्बर के वंशज

दल, जो भारतवर्ष में आया था, केवल लाभदायक व्यापार करना चाहता था। उन्हें जो राजनैतिक शक्ति प्राप्त हुई उसका ईस्ट इंडिया कम्पनी इसी काम के लिए प्रयोग करती थी। यह सत्य है कि १८५८ के साल में ब्रिटेन के ताज ने भारतवर्ष के शासन को अपने हाथ में ले लिया था। प्रश्न यह है कि क्या ब्रिटिश ताज के शासन का उत्तरदायित्व ग्रहण कर लेने पर देश की आर्थिक स्थिति में कुछ परिवर्तन हुआ? कहने को तो जो शक्ति ईस्ट इंडिया कम्पनी के संचालकों में केन्द्रीभूत थी वह पार्लियामेंट को सौंप दी गई थी परन्तु व्यवहार में ईस्ट इंडिया कंपनी के सञ्चालकों का स्थान भारत-मंत्री ने ग्रहण कर लिया था। यह बोर्ड अब 'सेक्रेटरी आफ़ स्टेट इन कौसिल' के नाम से पुकारा जाता है; और अब तक भारतीय कर और कोष पर शासन करता है। भारत में जो अँगरेज़ अफ़सर शासन कार्य कर रहे हैं, उन्हें इस बोर्ड की आज्ञा माननी पड़ती है। वास्तविक स्थिति क्या है? इसका एक ज्वलन्त उदाहरण अभी हाल ही में देखने में आया है। भारत सरकार के अर्थ-सचिव सर बैसिल ब्लैकेट को, जिनकी अर्थशास्त्र में बड़ी प्रसिद्धि है, 'बोर्ड आफ़ डाइरेक्टर्स के सामने रिज़र्व बैंक-सम्बन्धी वाद-विवाद पर अपने विचार उपस्थित करने के लिए स्वयं जाना पड़ा। भारत-सरकार तार-द्वारा प्रार्थनाएँ करते करते थक गई पर भारतवासिये की आवश्यकतानुसार इस बोर्ड से भारत के लिए एक रिज़र्व बैंक स्थापित करने का अधिकार न प्राप्त कर सकी। लन्दन में स्थापित ज्वाइंट-स्टाक कम्पनियों के बोर्ड आफ़ डाइरेक्टर्स का जो व्यवहार प्रायः समुद्रपार के कारखानों के साथ होता है वहीं भारत जैसे विशाल देश के साथ भी किया गया। समुद्रपार का मैनेजर हेडक्वार्टर में बोर्ड और उसके हिस्सेदारों को––जो इस परिस्थिति में ब्रिटेन के बैंकर होते हैं––वह संतोष दिलाने के लिए बुलाया जाता है कि जिस नीति के लिए सिफारिश की जा रही है वह कंपनी के हित में है। क्या कोई बात इससे भी अधिक स्पष्ट रूप से यह सिद्ध कर सकती है कि 'पवित्र संरक्षण का दावा' आँसू पोंछना-मात्र है, और इस देश में जिस नीति पर काम होता है उसके निश्चय करने में अँगरेज़ बैंकरों और व्यवसाचियों का प्रबल हाथ नहीं रहता?"

सर इब्राहिम भारत ले अँगरेजों की अर्थ-नीति के उतने ही कड़े समालोचक हैं जितने कि 'बङ्गाली और उनकी जाति'। वे ठीक ही कहते हैं:––

"भारतवर्ष की आर्थिक उन्नति को दृष्टि में रखते हुए कृषि, उद्योग, व्यापार, करेंसी, एक्सचेंच और राज्यकोष, इन सबकी एक साथ या पृथक् पृथक् जाँच होनी चाहिए। आप यह देखेंगे कि केवल एक कमीशन के अति-