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दुखी भारत


वोट थे। इस अधिवेशन के सभापति मौलवी मुहम्मद याकब बनाये गये थे, जो बड़ी व्यवस्थापिका सभा के उप-सभापति भी हैं। कमीशन में बिलकुल अँगरेज़ों को रखने की नीति के विरुद्ध आपने बड़ा जोरदार भाषण दिया था।

इसकी प्रतिद्वन्द्विता में इन्हीं तिथियों पर एक सभा लाहौर में की गई थी। इस सभा को भी अखिल भारतीय मुसलिम लीग का अधिवेशन घोषित किया गया था। इसके सभापति लाहौर के सर मुहम्मद शफ़ी बनाये गये थे। इस सभा में कमीशन का बहिष्कार न करने के लिए मामूली बहुमत से एक प्रस्ताव पास हो जाने की घोषणा कर दी गई थी। अल्पमतवालों ने फिर से वोट गिने जाने के लिए आवाज़ उठाई पर उसे अस्वीकार कर दिया गया। इस घोषित किये गये अल्पमतवालों के नेताओं-श्रीयुत्त मुहम्मद आलम एम॰ एल॰ सी॰, अब्दुलकादिर (पंजाब खिलाफ़त कमेटी के सभापति) अफज़लहक़ एम॰ एल सी॰, मज़हरअली अज़हर और मुहम्मद शरीफ ने समाचार-पत्रों में अपना एक वक्तव्य प्रकाशित कराया है। उसमें उन्होंने सभापति के अनौचित्यों की शिकायत की है और यह सिद्ध किया है कि दोनों मोर के वोट क़रीब क़रीब बराबर थे। परन्तु इस उन्नति के विरोधी और राजभक्त' सभापति ने भी अपने व्याख्यान में कहा था:---

"भीतरी मामलों में भारतमन्त्री का हाथ होना राज्य-प्रबन्ध के हित में अच्छा नहीं है। सर शफी की राय में इस सम्बन्ध में भारत-लरकार को स्वतंत्र कर देना चाहिए। केन्द्रीय और प्रान्तीय राज्य-प्रबन्ध में शीघ्र किये जाने योग्य सुधारों के सम्बन्ध में अपनी सम्मतियों को विस्तारपूर्वक वर्णन करते हए आपने कहा कि सरकार के विदेशीय और राजनैतिक विभागों को एक सदस्य की देख-रेख में कर देना चाहिए; भारतीय मंत्रिमण्डल में सेना-"विभाग के लिए एक सिविलियन मेम्बर की वृद्धि होनी चाहिए, और वायसराय की कार्य्यकारिणी समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर ८ कर देनी चाहिए जिनमें ४ भारतीय हों। आपने यह भी कहा कि केन्द्रीय शासन में दत्त-विभागों के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों में से एक या कई सदस्य नियुक्त होने चाहिएँ? और उन्हीं पर इन विभागों के शासन का उत्तरदायित्व रहना चाहिए। प्रान्तों के दोहरे शासन के सम्बन्ध में सर मुहम्मद मे कहा कि अब दिलबहलाव के लिए प्रयोग करना बन्द कर देना चाहिए और उन्हें फिर एकई रूप प्रान्तीय शासन के सिद्धान्त पर श्रा जाना चाहिए।"