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अँगरेज़ी राज्य पर अँगरेज़ों की सम्मतियाँ


होना चाहिए। वे भारत में जब उतरते हैं तब उन्हें भाषा का ज्ञान बिलकुल नहीं रहता। जङ्गल के अफसरों, डाक्टरों और इम्जीनियरों की भी यही दशा रहती है। और सबसे आश्चर्य्य की बात तो यह है कि शिक्षा-विभाग के अफसर तक भारतीय भाषायों से अनभिज्ञ होते हैं।......यह कहना कदाचिन् ही अनुचित हो कि यह उस देश की बुद्धि का अपमान करना है।"

प्रसिद्ध अँगरेज़ समाज-वेत्ता मिस्टर एच॰ एम॰ हिंड मैन ने, जो भारतीय मामलों में सदा बढ़ी दिलचस्पी रखते थे, लिखा था:-

"जो अँगरेज़ भारतवर्ष में शासन करने आते हैं उनके पालन-पोषण और शिक्षा की व्यवस्था यथासम्भव ऐसे वायुमण्डल में की जाती है जो एशिया के विचारों से दूर और उनके सर्वथा प्रतिकूल होता है। जिन जातियों पर वे शासन करते हैं उनको जहाँ तक हो सकता है अपने कार्यों में और अपने विनादों में सम्मिलित नहीं करते। शासन का प्रधान भी भारतवर्ष में योरप से बिलकुल नया नया लाया जाता है और भारत के सम्बन्ध में उसे बिलकुल ज्ञान नहीं होता। फिर वह अपने कार्य पर पाँच वर्ष से अधिक रहने भी नहीं पाता। (इस प्रकार जैसे ही वह भारतवर्ष के सम्बन्ध में कुछ जानना आरम्भ करता है वैसे ही वह यहाँ से रवाना हो जाता है।) उसके अधीन जो अफसर होते हैं ये प्रायः छुट्टी मनाने के लिए इंगलैंड जाते रहते हैं और नौकरी का समय पूरा हो जाने पर एक बड़ी पेंशन के साथ सदा के लिए इंगलैंड में रहने को भेज दिये जाते हैं। इन अच्छे भावों से प्रेरित पर सहानुभूति-विहीन स्वाथियों का शासन जितने ही अधिक समय तक रहेगा उतना ही भारतवासियों के साथ इनका सम्बन्ध कम धनिष्ट होता जायगा। जाति और वण का भेद जो अँगरेज़ी शासन के प्रारम्भ में बिलकुल साधारण था, अब प्रतिवष अधिकाधिक प्रबल होता जाता है। स्वयं भारतवर्ष में प्राचीन वंश (जिसके सामने प्राचीन से प्राचीन योरपियन राजसत्ता कीचड़ की जात समझी जायगी) के लोग, नौकरशाही के इन नये पहुँच हुए रंगरूटों-द्वारा प्रधान नगरों में और रेलों पर, बराबरी के व्यवहार के अयोग्य समझे जाते हैं।"*[१]

मिस्टर हिंडमैन ने भारतवर्ष के एक बड़े अँगरेज़ अफ़सर का निम्नलिखित कथन उद्धृत किया है:

"इस बात के सत्य होने का मुझे दुःख है कि अँगरेज़ लोग भारतवर्ष में वहां के निवासियों से सर्वथा पृथक रहते हैं। यह पार्थक्य किसी अंश में

  1. * 'भारत के सम्बन्ध में वास्तविक बातें प्रथम पुस्तक, पृष्ट १०, न्यूयार्क।