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अँगरेज़ी राज्य पर अँगरेज़ों की सम्मतियाँ

व्यक्ति कहता है कि वह योग्य है तो वह निश्चय ही अपने को उससे अधिक महत्त्व देता है जितना कि उसका परिचय रखनेवाले उसे दे सकते हैं।"

यह जान ब्राइट की सम्मति है जिसके समान, सावधानी से व्याख्यान देनेवाले और निणयों में न्याय से काम लेनेवाले, व्यक्ति इँगलैंड ने कम देखे थे।

डाक्टर सन्डर लेंड ने ब्राइट के निष्कर्ष के उदाहरण में पार्लियामेंट के सदस्य कर्नेल वेजउड का एक पत्र उद्धृत किया है। यह पत्र उन्होंने मुझे लिखा था और यह मेरे साप्ताहिक पत्र 'पीपुल' में प्रकाशित हुआ था। पत्र में कर्नेल वेजउड ने, लार्ड अरविन के सम्बन्ध में, जब वे भारतवर्ष के गवर्नर नियुक्त हुए थे, निम्नलिखित बात लिखी थी:––

"भारतवर्ष में उनके दिन बड़ी बेचैनी में व्यतीत होंगे। कर्तव्य-पालन के लिए उन्हें अपने आपको प्रकट रूप से बलिदान कर देना पड़ेगा। सबसे भारी कठिनाई उनके मार्ग में यह है कि वे भारतवर्ष के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते। उन्हें विवश होकर नौकरशाही के अनुभवी अधिकारियों के चंगुल में रहना पड़ेगा। जहाँ तक मुझे स्मरण है, वे किसी भारतीय वाद-विवाद के अवसर पर पार्लियामेंट में उपस्थित भी नहीं रहे[१]।"

अब एक ऐसे मनुष्य के विषय में सोचिए जिसके सम्बन्ध में पार्लियामेंट के एक प्रसिद्ध सदस्य की यह राय हो और जो विशाल भारतीय राष्ट्र पर शासन करने के लिए नियुक्त किया जाय।

प्रधान सचिव एसक्रिथ ने, '१९०९ ईसवी में यह घोषणा की थी कि ऐसे बहुत से भारतवासी हैं जो भारत में उच्च पदों को सुशोभित करने के लिए पूरी योग्यता रखते हैं। उन्होंने उन अपूर्ण और निम्नकोटि की योग्यताओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया था जो उन पदों के लिए अँगरेज़ों के सम्बन्ध में उपयुक्त समझी जाती हैं। उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि यदि उन पदों पर ऐसे भारतीय नियुक्त किये जाते जिनमें


  1. दी "पीपुल" २५ दिसम्बर १९२५