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अँगरेज़ी राज्य पर अँगरेज़ों की सम्मतियाँ

श्रीयुत सी॰ एफ एंडूज़ अपनी हाल की "भारत को स्वतन्त्रता का अधिकार" नामक पुस्तक में लिखते हैं:––

"गत शताब्दी की इटली और आस्ट्रिया में हम साम्राज्यवाद की विदेशी शासन की एक निराली भूल देखते हैं। आस्ट्रियन साम्राज्य, अपनी इटालियन दुम के साथ––इटली के साथ जिसे इसने बलपूर्वक अपने वश में कर रखा था––बिल्कुल अस्वाभाविक प्रतीत होता था। यह दो राष्ट्रों में, जिन्हें मित्रभाव से रहना चाहिए था, केवल घृणा, निरन्तर बढ़नेवाली घृणा उत्पन्न कर सकता था। ब्रिटिश साम्राज्य भी अपनी भारतीय जिसे इसने बलपूर्वक अपने वश में कर रक्खा है––बिल्कुल अस्वाभाविक प्रतीत होता है। यह भारतवर्ष और इँगलेंड में, दो राष्ट्रों में, जिन्हें मित्रभाव से रहना चाहिए था, केवल कटुता, निरन्तर बढ़नेवाली कटुता और पार्थक्य उत्पन्न कर सकता है।"

डाक्टर सन्डरलेंड ने इस विषय को नीचे लिखे अनुसार समाप्त किया है––

"संसार में इतनी निम्न कोटि की और इतनी निर्दयतापूर्ण कोई कथा नहीं है जितना संसार के सम्मुख यह दावा उपस्थित करना कि इँगलेंड दूरस्थ भारतवर्ष का शासन बड़ी अच्छी तरह कर रहा है। या यह कि सम्भवतः बड़ी अच्छी तरह या बिना अत्यन्त गम्भीर और दुःखान्त अन्याय तथा भूलें किये कर सकता है।"

परन्तु भारतवर्ष को जितना मेकाले या फुलर जानते थे, या रथरफोर्ड या डिकिंसन था सन्डरलेंड जानते हैं उससे कहीं अच्छा उसे मिस मेयो जानती है। प्रत्यक्षतः वह भारतवर्ष के सम्बन्ध में उन सबसे योग्य और उन सबसे सच्ची निरीक्षिका जिन्हें संसार ने गत दो शताब्दियों में उत्पन्न किया है। हे मूर्खते! तेरा नाम केथरिन मेयो है!



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