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दुखी भारत

होगा। स्थान की कमी के कारण, भारत में अँगरेज़ी शासन का इतिहास और किन किन परिस्थितियों से होता हुआ वह १९१९ के सुधार तक पहुँचा, आदि बातों का वर्णन हम यहीं नहीं कर होगा सकेंगे। वह कथा मेरी 'यंग इंडिया' और 'पोलिटिकल फ्युचर आफ़ इंडिया' (भारत का राजनैतिक भविष्य) नामक दोनों पुस्तकों में लिखी है। दोनों पहले अमरीका के संयुक्त राज्य में प्रकाशित हुई थीं, पहली १९०९ में और दूसरी १९१९ में[१]

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१९१४ में महायुद्ध के आरम्भ होने से पूर्व भारतवर्ष के कुछ भागों में क्रान्तिकारी थे। समस्त भारत अपनी राजनैतिक अवस्था पर उत्तेजित हो उठा था। युद्ध के समय में मित्रराष्ट्रों के नेताओं और प्रेसीडेंट विलसन की युद्ध के उद्देश्य आदि के सम्बन्ध में की गई घोषणाओं से भारतीय राष्ट्रवादियों के हृदयों में यह आशा उत्पन्न हो गई थी कि यदि मित्रराष्ट्रों की विजय हुई तो उनके देश के प्रति न्याय किया जायगा। ईसवी में, जब युद्ध ने बड़ा भयङ्कर रूप धारण कर लिया था, भारतीय कांग्रेस ने और अखिल भारतवर्षीय मुसलिम लीग ने ऐसे राजनैतिक सुधारों की एक सम्मिलित योजना तैयार की जिन्हें वे अपने देश में शीघ्र कराना चाहते थे। इसके साथ ही साथ युद्ध में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की अत्यन्त सहायता की। महात्मा गान्धी ब्रिटिश सेना में सिपाहियों की भर्ती करने के लिए चारों तरफ़ फिरे और उन्होंने सेवा-दल श्रादि का संगठन किया। युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए भारतवर्ष मे अपने रक्त की नदियाँ बहा दी। यदि भारतवर्ष धन-जन, शस्त्र और सामग्री आदि से सहायता न करता तो ब्रिटेन के रुतबे में बड़ा भयानक आघात पहुँचता और कदाचित् मित्रराष्ट्र जर्मनी को पेरिस की ओर बढ़ने से रोक न सकते।

"महायुद्ध में भारत का योग' नामक सरकार की ओर से प्रकाशित

पुस्तक में यह बात स्वीकार की गई है कि––"भारतीय फौजें फ्रान्स में ऐन


  1. दोनों को बी॰ डब्ल्यू॰ ह्मूबच, न्यूर्याक में प्रकाशित किया था। यंग इंडिया को हालही में लाहौर की सर्वेंट आफ़ दी पीपुल सोसाइटी में प्रकाशित किया है।