पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२६
दुखी भारत

की गई भाषा नहीं है, क्योंकि पहले वारेन हेस्टिंगज, मेकाले, मुनरो, मेटकाफ, और दूसरे ऐसे ही पदों के प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनीतिज्ञ इससे भी अधिक ज़ोरदार वाक्यों का प्रयोग कर चुके हैं। परन्तु इसके महत्त्व पूर्ण होने का कारण यह है कि यह घोषणा भारत सचिव ने की है जो ब्रिटिश के ताज और मन्त्रि- मण्डल के प्रतिनिधि हैं और विधान के अनुसार ब्रिटिश के ताज और मन्त्रिमण्डल ग्रेट ब्रिटेन के निवासियों के प्रतिनिधि हैं।"

आगे चल कर मैंने इस बात पर जोर दिया था कि––

"इस घोषणा में और १८३३ के एकृ की शाही घोषणा से तथा १८५८ की शाही घोषणा हो जो विशेषता है वह भाषा की विशेषता नहीं है बल्कि इस बात की विशेषता है कि इसने भारतीयों के विचारों को जानने की चेष्टा की गई, समय के अनुसार उनको समझा गया और उपस्थित किया गया तया ऐसे दो राजनीतिज्ञों ने अपनी सम्मिलित रिपोर्ट में सम्पूर्ण समस्या का स्पष्ट रूप से और न्याय के साथ वर्णन किया है जो वर्तमान समय में भारत सरकार के सब अफसरों से ऊपर हैं। इस बात को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय नेताओं ने इस घोषणा और रिपोर्ट की हृदय से प्रशंसा की है।"

हमने ये लम्बे उद्धरण पाठकों को यह बतलाने के लिए उपस्थित किये हैं कि जब यह घोषणा की गई थी तब हम भारत के राष्ट्रवादियों ने इसे किस रूप में ग्रहण किया था।

ऐंग्लो इंडियन अफसरों ने भी भारत-मंत्री के कार्य का उदारता के साथ समर्थन किया था। उनके एक मुख्य और विश्वासपात्र वक्ता सर हारकोर्ट बटलर ने, जो उस समय संयुक्त-प्रान्त श्रागरा और अवध के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे, नवीन परिवर्तन की आवश्ययकता पर जोर दिया था। सर हारकोट' बटलर ने तत्त्ववेत्ता के समान व्यवस्था दी थी कि 'कोई वस्तु सदा एक ही सी नहीं रहेगी और कहा था कि:––

"इतना तो निश्चय है कि हमें अपने समस्त प्राचीन आदर्शों को हटा देना पड़ेगा और नये सिरे से आरम्भ करना होगा।......हम जल-विभाजक को पार कर चुके हैं और अब नवीन भूमि की ओर देख रहे हैं। प्राचीन भविष्य-