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सुधारों की कथा

विवरण पर दिया था। इस निर्णय के अनुसार देश पर एक करोड़ रु॰ वार्षिक व्यय का भार और आ पड़ा। परन्तु यही इसमें सबसे बुरी बात नहीं थी। इसने भारतवर्ष में अँगरेज़ी शासन के 'लोहे के पिंजड़े' को और भी दृढ़ कर दिया। मिस्टर लायड जार्ज उस समय भी ग्रेटब्रिटेन में शासन के प्रधान पद पर थे और उनके भाषण से यह स्पष्ट प्रकट हो गया था कि ब्रिटिश लोगों के हृदय में क्या है? मिस्टर लायड जार्ज अपने निकृष्ट प्रकार के ढोंग के लिए प्रसिद्ध हैं। अन्तरात्मा की पुकार उनके लिए व्यर्थ है और वादों तथा प्रतिज्ञाओं की पवित्रता की भी वे परवाह नहीं करते। स्वयं उनके मित्र उन्हें विश्वास के योग्य नहीं समझते।

परन्तु इस सम्बन्ध में उन्होंने जो कुछ कहा वह वास्तव में ग्रेटब्रिटेन के साम्राज्यवादी मस्तिष्क की बात थी। ली कमीशन की रिपोर्ट पर सरकार ने जो कार्य्यवाही की है उसने भारत की बेड़ियों को आनेवाले दसों वर्ष के लिए और भी कस दिया है। कोई भारतीय इसे भुला नहीं सकता। जब तक उच्च नौकरियों पर अँगरेज़ नियुक्त किये जायँगे तब तक भारतवर्ष में न स्वराज्य हो सकता है और न वास्तविक स्वशासन की ओर कोई उन्नति हो सकती है। इस विषय में भारत के विरोधी 'दी लास्ट डोमिनियन, के रचयिता अल कारथिल के भी वही विचार हैं जो भारतवासियों के हैं।

कोष और सेना ही शासन की कुञ्जियां हैं। सुधारयुक्त सरकार भारतीय कोष के कुप्रबन्ध के लिए और कानूनी शक्तियों का जानबूझ कर दुरुपयोग करने के लिए बदनाम हो चुकी है। कर-सम्बन्धी जिन प्रस्तावों को व्यवस्थापिका सभा ने अस्वीकार कर दिया था उन्हें गवर्नर जेनरल ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने सर्वमान्य और प्रातिनिधिक सभा के विरुद्ध व्यय करने की स्वीकृति दी है। इसके अतिरिक्त सरकार ने 'एक्सचेंज' को अपने हाथ में रखकर और 'करेंसी' का चतुरता के साथ प्रयोग करके भारतीय करदाताओं के अरबों रुपये छीन लिये हैं। इसने व्यवस्थापिका सभा के निर्णय का और देश के ग़ैर सरकारी बुद्धिमान् व्यक्तियों की सम्मति का घोर तिरस्कार किया है।

भारतवर्ष का व्यापार अँगरेज़ी जहाजों-द्वारा होता है। अँगरेज़ सरकार की नीति सदा यह रही है कि भारतीय जहाज़ी कम्पनियों को कोई प्रोत्साहन