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सुधारों की कथा

व्यय पर मत नहीं दिया जा सकता और इसके उच्च पदों तक भारतवासियों को नहीं पहुँचने दिया जाता। ३१ करोड़ ५० लाख मनुष्यों की संख्या में से केवल ९ भारतीय प्रतिवर्ष सेना में उच्च पदों के लिए भर्ती किये जाते हैं।

१९२५ ईसवी में बड़ी व्यवस्थापिका सभा की लगातार मांग पर सरकार ने सेना में उच्च पदों पर भारतीयों के लिए जाने के प्रश्न पर विचार करने के लिए सरकारी और ग़ैर सरकारी व्यक्तियों, सेना के सम्बन्ध में अनुभव रखनेवाले व्यक्तियों और प्रातिनिधिक भारतीयों की एक कमेटी नियुक्त की। कमेटी का सभापति एक सरकारी अफ़सर नियुक्त हुथा। इस कमेटी ने सर्वसम्मति से एक विवरण उपस्थित किया जिस पर एक वर्ष तक कोई आज्ञा नहीं दी गई। और अन्त में 'गोरी सभा' ने इसकी मुख्य सिफ़ारिशों को भी रद कर दिया। भारतवासियों को न थल-सेना में अवसर दिया जाता है, न जल-सेना में और न हवाई सेना में।

सुधारों की कार्य्यवाही की परीक्षा करने और भारतवर्ष के लिए नये विधान की सिफ़ारिश करने के लिए पूर्ण-रूप से अँगरेज़ी कमीशन नियुक्त करके सरकार ने अपनी विरोध नीति को उसकी पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया है। तब क्या यह कोई आश्चर्य्य की बात है कि भारतवासियों को ब्रिटिश की नेकनीयती में ज़रा भी विश्वास नहीं रह गया है; और वे अपने इस अविश्वास को बड़ी व्यवस्थापिका सभा की बैठकों में प्रायः बड़े कटु शब्दों में प्रकट करते हैं?