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तेंतीसवाँ अध्याय
संसार का सङ्कट––भारतवर्ष

अपनी पुस्तक के अन्त में मिस मेयो यह घोषणा करती है कि महामारियों का गृह और उद्गम-स्थान होने के कारण भारतवर्ष संसार के लिए सङ्कट-स्वरूप है। हम इस बात से सहमत हैं कि भारतवर्ष संसार का सङ्कट है। हाँ, हम इस विषय पर केवल एक भिन्न दृष्टिकोण से विचार करते हैं। हम इस पुस्तक में प्रमाण और अङ्क देकर यह सिद्ध कर चुके हैं कि भारत की इस दशा का उत्तरदायित्व अँगरेज़ों पर है जो भारत को राजनैतिक दासता में जकड़े हुए हैं और जो अपनी राजनैतिक प्रधानता का प्रयोग करके भारत को चूस रहे हैं। इसलिए जब तक भारत की राजनैतिक असमर्थता दूर न कर दी जाय और उसे वह स्वतंत्रता न दे दी जाय जो अन्य स्व-शासन करनेवाले राष्ट्रों को प्राप्त है तब तक वह स्वास्थ्य और शान्ति दोनों की दृष्टि से संसार के लिए सङ्कट-स्वरूप बना ही रहेगा। भारतवर्ष ब्रिटिश साम्राज्य की धुरी है। भारत और चीन दोनों के हाथ में विश्वशान्ति की कुञ्जी है। अतीतकाल से भारतवर्ष साम्राज्य-निर्माण करनेवालों का लक्ष्य रहा है। जिसके हाथ में कभी भारतवर्ष रहता है उसके हाथ में विश्व की प्रधानता और उन्नति की कुञ्जी रहती है। विशेषतः आधुनिक युग में। जब तक ग्रेटब्रिटेन ने भारत पर अधिकार नहीं किया था तब तक वह एक ग़रीब देश था। उसके पास न तो आय के कोई उल्लेखयोग्य साधन थे और न कोई साम्राज्य था। भारतीय धन की सहायता पाकर उसने औद्योगिक क्रान्ति की और खासा धनी हो गया। भारत के स्वर्ण ने और भारत के सिपाहियों ने उसे इस योग्य बनाया कि उसने संसार को जीत लिया। एशिया और अफ़्रीका में जितने देशों पर उसका अधिकार है उनका एक एक खण्ड उसे तब प्राप्त हुआ था जब वह भारतवर्ष में पूर्ण रूप से अपना आधिपत्य जमा चुका था। पूर्व में ब्रिटेन का साम्राज्य भारत पर ही निर्भर रहा है और निर्भर रहेगा। चाहे जितनी बातें बनाई जायँ