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संसार का सङ्कट––भारतवर्ष

ई॰ में भूटान का कुछ भाग बङ्गाल में मिला लिया गया था। १८६५ ई॰ से उसे ब्रिटिश से आर्थिक सहायता मिल रही है। जब से अँगरेज़ों ने भारत में अधिकार जमाना आरम्भ किया था तभी से भूटान में साधुओं और गृहस्थों का दोहरा शासन रहा है पर १९०७ ईसवी में उसका अन्त कर दिया गया। तिब्बत की कठिनाइयाँ चेतावनीस्वरूप थीं, उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती थी। एक महाराजा चुना गया। इससे अँगरेज़ों को बिना जीते ही उस देश पर प्रभुत्व जमाने का अवसर मिल गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा भूटान को जो आर्थिक सहायता मिलती थी वह १९१० ईसवी में द्विगुणित कर दी गई। इसके बदले में भूटान ने अपनी वैदेशिक सम्बन्ध की नीति पर अँगरेज़ों को पूरा अधिकार दे दिया तथा भूटान की सीमा के भीतर उन्हें दो दृढ़ स्थान दिये गये। ब्रिटिश भारत की रचना के इतिहास पर विचार करते हुए यह अनुमान किया जा सकता है कि विकट-भविष्य में नेपाल और भूटान दोनों भारत के अभिन्न अङ्ग बन जायँगे। हाँ, यदि हम अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में किसी भारी परिवर्तन के द्वार पर हो तो बात दूसरी है।

"अफगानिस्तान के सम्बन्ध में परिस्थिति भिन्न थी। दीर्घ और व्यय-पूर्ण युद्धों के पश्चात् १८९३ ईसवी की सन्धि से ब्रिटिश को अफगानिस्तान पर प्रधानता प्राप्त हो गई थी। परन्तु रूस, जो एशिया में अपना राज्य बढ़ा रहा था, बिना युद्ध के अफगानिस्तान को अँगरेज़ों के हाथ में नहीं जाने देना चाहता था। अब रूसी साम्राज्यवाद और ब्रिटिश साम्राज्यवाद का संर्घष हुआ।......मंगोलिया में प्रवेश प्राप्त कर चुकने के पश्चात् रूसी लोग अपना प्रभाव तिब्बत पर जमाना चाहते थे। वे भी उन्हीं कारणों से प्रेरित होकर अपनी साम्राज्यवादिनी नीति का अनुसरण कर रहे थे जिनसे कि ब्रिटिश थे। अँगरेज़ राजनीतिज्ञों को अफगानिस्तान और तिब्बत भारत की रक्षा करने के लिए दो ढालों के समान प्रतीत होने लगे। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दस वर्षों तक भारत-सरकार और ब्रिटिश वैदेशिक कार्यालय इन दोनों देशों को और फ़ारस को भारत के 'बचाव के साधन' समझते रहे। इससे इनका ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया जाना आवश्यक समझा जाने लगा। १९०७ की सन्धि के कारण रूस से युद्ध नहीं हो सका। उन्हीं दिनों में बगदाद में रेलवे बनाने का विचार करने के कारण जर्मनी भारत के लिए सङ्कट-स्वरूप बन गया। ग्रेट-ब्रिटेन ने यह निश्चय कर लिया था कि वह न तो जर्मनी को फ़ारस की खाड़ी तक पहुँचने देगा और न रूस को। फ्रांस और रूस के साथ ग्रेटब्रिटेन की औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा जटिल रूप धारण कर चुकी थी इससे यह जर्मनी के साथ कोई समझौता नहीं कर सका। बग़दाद रेलवे का प्रश्न पलैंडर्स से लेकर मेसोपोटामिया तक के युद्ध-क्षेत्रों में हल किया गया।"