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परिशिष्ट
'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

डाक्टर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बाली से साप्ताहिक 'मैंचेस्टर गार्जियन' को एक पत्र लिखा था जो उस समाचार-पत्र की १४ अक्टूबर १९२७ की संख्या में प्रकाशित हुआ था। नीचे उसकी पूरी नक़ल दी जाती है:–

क्या आप न्यायभाव से प्रेरित होकर मेरी इस चिट्ठी को अपने पत्र में स्थान दे सकते हैं? मैं भारत के एक प्रतिनिधि की हैसियत से एक अत्यन्त अन्यायपूर्ण आक्रमण के विरुद्ध अपनी सम्मान-रक्षा के लिए यह चिट्ठी लिखने को विवश हुआ हूँ।

इस बाली द्वीप में यात्रा करते समय संयोगवश १६ वीं जुलाई के न्यू स्टेट्समैन का एक अङ्क मेरे हाथ लग गया। इसमें भारतवर्ष के सम्बन्ध में अमरीका के एक महिला-यात्री की लिखी हुई एक पुस्तक की समालोचना प्रकाशित हुई है। लेखिका ने हमारी जाति के ऊपर निन्दा का जो पहाड़ लादा है उसका नमक मिर्च लगाकर समर्थन करते हुए और हिन्दुओं में, बड़े बड़ों में भी, सामान्य रूप से पाये जानेवाले अवगुण–असत्य भाषण–की ओर बार बार ध्यान आकर्षित करते हुए, इस समालोचक ने एक द्वेषपूर्ण मिथ्या-रचना को सार्वजनिक रूप दिया है। इसे उसने इस पुस्तक में या किसी दूसरी पुस्तक में पूर्णरूप से प्रदर्शित की गई गन्दी बातों के एक नमूने के समान नहीं बल्कि सत्य के सम्बन्ध में एक ऐसी व्यर्थ बात के समान उपस्थित किया है जिसमें लेखिका ने अप्रत्यक्ष रूप से अपनी निजी सम्मति भी मिला दी है। वह इस प्रकार है:–"कवि सर रवीन्द्रनाथ ठाकुर छपे हुए शब्दों में अपना यह विचार प्रकट करते हैं कि स्त्रियों को कामोत्तेजना से बचाने के लिए रजोदर्शन से पूर्व ही ब्याह की सम्पूर्ण विधियाँ पूरी कर देनी चाहिएँ।

पश्चिम में शत्रु-देशों के विरुद्ध भयानक और मिथ्या बातों का जो प्रचार किया जाता है उससे हम पीड़ा के साथ परिचित हो गये हैं। परन्तु