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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

अमङ्गल करने के लिए टिक सकेगा, इसका उलटा परिणाम होना अनिवार्य्य है। उस समय संसार की सभ्यता के लिए भारत के कार्य्यों की पुनः प्रशंसा होगी। मैं महात्मा गान्धी के इस विचार से सहमत हूँ कि भारत विशाल-हृदय होकर मिस मेयो की इस पुस्तक को अपने सुधार-सम्बन्धी उद्योगों के लिए एक उत्तेजना समझे। असत्य की अपेक्षा सत्य में बहुत अधिक शक्ति होती है। कुभावना की अपेक्षा शुभेच्छा अधिक बलवती होती है। कोई अकेली पुस्तक कितनी ही असत्य और घृणोत्पादन क्यों न हो संसार की जातियों के पारस्परिक भ्रम-निवारण और विशेष पारस्परिक सम्मान-प्रदानान्दोलन के मार्ग में अधिक काल तक टिक नहीं सकती।

मुझे विश्वास है कि आप इस विचार से सहमत होंगे।

अहमदनगर आपका
ए॰ एच॰ क्लार्क
५ दिसम्बर १९२७
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लार्ड सिनहा—जो ब्रिटिश-ताज के अधीन सर्वोच्च पदों पर कार्य्य कर चुके थे और जो एक-मात्र ऐसे भारतीय थे जिन्हें एक प्रान्त का गवर्नर बनाया गया था तथा जो अपनी मृत्यु समय, जो हाल ही में हुई है, प्रिवी कौंसिल की न्यायकारिणी समिति के सदस्य थे—जब ३० दिसम्बर १९२७ को जहाज़ से उतरे तब इंडियन डेलीमेल के एक प्रतिनिधि ने उनसे भेंट की। नीचे हम उनकी बात-चीत का वह अंश उद्धृत करते हैं जिसका इस विषय से सम्बन्ध है—

मैं महात्मा गान्धी की इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि मिस मेयो ने भारतवर्ष के समस्त गन्दे नाबदानों को खूब अच्छी तरह से सूँघा है और उसका चित्र सर्वथा अनौचित्यपूर्ण है। और मुझे दुःख के साथ यह कहना पड़ता है कि इस पुस्तक में जान बूझ कर नपा तुला असत्य उपस्थित किया गया है।

हमारे प्रतिनिधि ने पूछा—"क्या सब का सब?"

लार्ड सिनहा ने उच्च स्वर से जवाब दिया—'हाँ, सबका सब। सम्पूर्ण पुस्तक जो चित्र उपस्थित करती है, वह सर्वथा मिथ्या है।

"परन्तु मैं समझता हूँ कि भारतवर्ष में उसकी वंचकता को अनुचित महत्त्व दिया गया। इससे उसे अपनी पुस्तक बेचने में और अपना आन्दोलन करने में सहायता मिली है। जहाँ मैं यह सब कह रहा हूँ वहाँ इतना