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दुखी भारत

वहाँ के निवासियों को राजनैतिक दासता में जकड़े रहना चाहिए। मैं राजनैतिक दृष्टि से राजनीतिज्ञ नहीं हूँ। मैं मनुष्यता के विकास का विद्यार्थी हूँ और मनुष्य की पूर्णता के लिए एक उपर्युक्त मार्ग की खोज में हूँ। मैं यह निश्चय के साथ कहता हूँ कि भारतवर्ष के लिए जिन बातों की आवश्यकता है वे मदर इंडिया में बतलाई गई बाते के सर्वथा प्रतिकूल है। अनुभव ने हमेशा यह बतलाया है और आधुनिक मनोविज्ञान इसका समर्थन करता है कि उत्तरदायित्व योग्यता को जन्म देता है, उससे स्वयं जन्म नहीं ग्रहण करता।

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भारतवर्ष, बरमा और लङ्का की राष्ट्रीय ईसाई-सभा की कार्य-कारिणी समिति की ओर से मिस मेयो की पुस्तक मदर इंडिया के सम्बन्ध में एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ है। इस पर समिति के मंत्रियों––रेबरेंड डाक्टर एन॰ माओकोल और श्रीयुत पी॰ ओ॰ फिलिप––के तथा कुमारी ए॰ बी॰ वान डोर्न, अवैतनिक कार्यकर्ती, के हस्ताक्षर हैं। विपक्ष में केवल बिशप जे॰ डब्ल्यू॰ राबिन्सन हैं। परन्तु उनका मतभेद भी केवल पारिभाषिक है। भारतवर्ष के लाट पादरी और कलकत्ते के लार्ड बिशप इस सभा के सभापति हैं। डाक्टर एस॰ के दत्त उपसभापति हैं और कार्य- कारिणी समिति के सदस्यों में हैं––डोरंकल के बिशप रेवरेंड चितम्बर; रेवरेंड जे॰ एफ॰ एडवर्ड; मदरास के बिशप डाक्टर सी॰ आर॰ ग्रीन फील्ड; रेवरेंड जे॰ मैकेंज़ी, रायबहादुर ए॰ सी॰ मुखर्जी, श्रीयुत के॰ टी॰ पाल॰, बी॰ एल॰ रल्लाराम और रेवरेंड एच॰ सी॰ सी॰ वेल्ट। नीचे हम उस वक्तव्य का कुछ अंश उद्धत करते हैं:––

भारतीयों ने या विदेशी ईसाई-धर्म-प्रचारकों ने कभी इस बात को अस्वीकार नहीं किया कि भारतवर्ष में बड़ी सामाजिक कुरीतियाँ हैं। यह सबको विदित है कि भारतीय समाज-सुधारकों-द्वारा इन बुराइयों को दूर करने के लिए सङ्गठित रूप में बड़ा उद्योग हो रहा है। तो भी हम सब, जिनमें स्त्री और पुरुष दोनों सम्मिलित हैं और जिन्हें भारतवासियों के नैतिक जीवन का पूर्ण परिचय है, यह बात बिना किसी सङ्कोच के कह सकते हैं कि मिस मेयो की पुस्तक भारतवर्ष का जो चित्र अङ्कित करती है वह असत्य और अन्याययुक्त है। लेखिका ने जिन बातों को