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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

देखा है या जो उसे बताई गई हैं उनके आधार पर जो भयानक परिणाम निकाले गये हैं वे, पूरे भारतवर्ष के सम्बन्ध में विचार किया जाय, तो मिथ्या सिद्ध होंगे। पुस्तक के अन्त में मिस मेयो यह स्वीकार करती है कि उसने भारतीय जीवन के अन्य अङ्गों को अछूता छोड़ दिया है। इसी कारण से हम और भी दृढ़ता के साथ कहते हैं कि भारतीय जीवन दोष का ही जीवन नहीं है जैसा कि इस पुस्तक में दिखाया गया है। और इस पुस्तक में जिन कुरूप और घृणोत्पादक बातों पर जोर दिया गया है उनकी भारतीय समाज में प्रधानता नहीं है।

सौंदर्य और संस्कृति, दयालुता और आकर्षण, धर्म और भक्ति आदि गुण छोटे बड़े सबमें समानरूप से पाये जाते हैं। मिस मेयों ने अपनी पुस्तक में इन बातों को कोई स्थान नहीं दिया।

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स्त्री-संघ की मंत्री श्रीमती मारगैरेट ई॰ कज़िन्स ने मिस कैथरिन मेयो की मदर इंडिया के सम्बन्ध में अपना निम्नलिखित वक्तव्य प्रकाशित कराया है––

यद्यपि लेखिका ने अपने आक्षेपों के अधिकांश भाग का विषय भारतवर्ष में स्त्रियों पर किये गये अत्याचारों को ही बनाया है तथापि उसने श्रीमती नायडू जैसी प्रतिनिधि स्त्रियों से भेंट नहीं की। यदि वह भेंट कर लेती तो अधिक बुद्धि से काम ले सकती थी। भारतीय स्त्रियाँ सोचती हैं कि उनकी शक्ति इसलिए क्षीण की जा रही है कि जिससे उनके देश को स्वराज्य मिलने में विलम्ब लगे। श्रीमती कज़िन्स इस आक्षेप का खण्डन करती हैं कि भारतीय स्त्रियाँ रजोदर्शन के पश्चात् ९ मास के भीतर ही माता बनने की इच्छा करने लगती हैं, और कहती हैं कि लाखों की अधिक संख्या में लोग स्त्रियों को १६ वर्ष से पूर्व माता बनने का अवसर नहीं देते। यदि ऐसी बात न होती तो भारत शताब्दियों पहले ही नष्ट हो गया होता। अन्त में वे कहती हैं––उधर हम उसकी पुस्तक का खण्डन करें और इधर अपनी शक्ति का प्रत्येक औंस उन सामाजिक बुराइयों को उखाड़ने में लगावें जो वास्तव में हमारे बीच में विद्यमान हैं।

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श्रीयुत स्टेनली जोन्स, जो ईसाई-धर्म-प्रचारक हैं और जिन्हें भारतीय जीवन का अच्छा अनुभव है, इलाहाबाद के लीडर में अपनी एक प्रकाशित चिट्ठी में एक स्थान पर लिखते हैं:––

मदर इंडिया के सम्बन्ध में मेरे विचार संक्षेप में इस प्रकार हैं––

(१) यदि उसने जो आक्षेप किये हैं उन पर पृथक पृथक विचार किया जाय तो उन्हें अस्वीकार करना सरल न होगा। यत्र तत्र कुछ भूलें और

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