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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

घटना बतलाती है। सिक्खों ने किसके साथ विरुद्ध विद्रोह किया? तब तो उनकी जाति स्वतन्त्र थी।

अन्त में इतना और कह देना चाहता हूँ कि हिन्दुओं के बाल-विवाहों और पशुओं पर अत्याचारों––परन्तु हम लोग भी शिकार खेलते हैं––की जितनी निन्दा की जाय थोड़ी है। परन्तु मिस मेयो ने एक तरफ से निन्दा करके अपने इस महान् उद्दश्य को गिरा दिया। उसे यह भुला देने का अधिकार नहीं था कि भारतीय राजनीतिज्ञों के समस्त अनौचित्यों के विरुद्ध कुछ ने स्वार्थरहित और निर्भयतापूर्ण देशप्रेम के साथ साथ अपने विरोधियों के प्रति भी उच्च कोटि की उदारता का परिचय दिया है। कड़वी बात लिखकर, कि गोरे मनुष्यों का शासन विन्न कुलोत्पन्नों के लिए इतना अधिक अच्छा है कि वे केवल दुष्टतावश उससे असन्तोष प्रकट करते अपना पक्ष गिरा दिया।

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मदरास के युवक-ईसाई-संघ के अमरीकन मन्त्री श्रीयुत डी॰ एफ॰ मैक्लीलैंड ने सदरास की एक सार्वजनिक सभा में भाषण देते हुए मदर इंडिया का निम्नलिखित शब्दों में उल्लेख किया था[१]––

मिस कैथरिन मेयो की हाल में प्रकाशित हुई पुस्तक के सम्बन्ध में

अपने वक्ता सर टी॰ सदाशिव ऐयर के विचार सुनने के पश्चात्, एक अमरीकन की हैसियत से मैं अपना यह कर्तव्य समझता हूँ कि उस पुस्तक के सम्बन्ध में यह अत्यन्त लज्जा की बात है कि मेरे देश की एक महिला भारतवर्ष में बहुत थोड़े समय तक रहने के पश्चात् यहाँ के जीवन पर ऐसा अनुचित और अन्यायपूर्ण आक्षेप करे। मैंने उस पुस्तक का केवल एक अंश पढ़ा है। क्योंकि जो पुस्तक मैंने पढ़ने के लिए उधार ली थी वह मुझसे श्रीयुत एंडज ने ले ली और उसे अपने साथ लेते चले गये। परन्तु यह तो स्पष्ट है कि मिस मेयो ने भारत का केवल एक अङ्ग देखा है और उसे भी ठीक ठीक नहीं देखा। उसने बहुत सी ऐसी बातों की खोज की है जिन्हें वह सिद्ध नहीं कर सकती और उसके अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन भारतवर्ष का प्रत्येक पहलू से वास्तविक चित्र नहीं उपस्थित करते। मैं १९१५ ईसवी से भारतवर्ष में हूँ और इस समय में मुझे सब श्रेणियों के मनुष्यों से मिलने-जुलने का अवसर मिला है। मुझे उसकी पुस्तक का घोर विरोध करने में जरा भी सङ्कोच नहीं है। बाहर के पाठक उसके जिन निष्कर्षों को सत्य मान सकते हैं वे अधिकांश में उसकी पक्षपातपूर्ण निजी राय पर


  1. मदरास के दैनिक समाचार-पत्र––हिन्दू से।