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दुखी भारत

निर्भर हैं। अमरीकन राष्ट्र या किसी भी पश्चिमी राष्ट्र के सम्बन्ध में भी अत्यन्त आक्षेपपूर्ण पुस्तक लिखी जा सकती है। तब हम पश्चिम के लोग ऐसी पुस्तक का विरोध करेंगे, और हमारा विरोध करना उचित ही होगा। मानवीय पाप और सामाजिक बुराइयाँ संसार में सर्वत्र पाई जाती हैं। जो लेखक उससे निष्कर्ष निकालें उन्हें इस बात को सदा ध्यान में रखना चाहिए।......मैं इस सभा के सम्मुख इस बात के लिए अपना हार्दिक दुःख प्रकट करता हूँ कि एक अमरीकन नागरिक पाश्चात्य संसार के सामने भारतवर्ष को ऐसे पक्षपात और अन्याय के साथ उपस्थित करे।

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माननीय सर सी॰ पी॰ रामस्वामी ऐयर ने––जो जेनेवा के राष्ट्रसंघ के अधिवेशन में भारत-सरकार के प्रतिनिधि होकर सम्मिलित होने गये थे––साम्राज्य के भिन्न भिन्न भागों से आये हुए विद्यार्थियों की एक सभा में भाषण देते हुए कहा था––

बाहर के लोगों को मिस मेयो की मदर इंडिया का वास्तविक चित्र दिखलाने के लिए एक उपमा का प्रयोग करना अधिक अच्छा होगा। मान लीजिए, मेरे घर में एक मेहमान आया। उसे बैठक और रहने के कमरे दिखाये गये। इसके अतिरिक्त उसने बाग और अन्य साज-सामान भी देखे। यह भी मान लीजिए कि बिदा होते समय उसकी दृष्टि किसी कोने में एक खुले नाबदान पर जा पड़ी। अब यह मान लीजिए कि मेरा यह मेहमान मेरे घर में देखी गई तमाम बातों के सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखने बैठता है पर उस नावदान के अतिरिक्त साज-सामान, बाग़ आदि सबको भुला देता है; केवल उसी एक नाबदान पर अपनी समस्त मानसिक शक्तियों को केन्द्रित करता है। ऐसी दशा में मेरे उस मेहमान का कार्य ठीक वैसा ही होगा जैसा मिस मेयो ने किया है। ऐसा न समझिए कि यह कहते समय उन सामाजिक कुरीतियों और त्रुटियों को एक क्षण के लिए भी भुला रहा हूँ, जिनसे भारतवर्ष पीड़ित है। इनमें से कुछ बुराइयाँ इतनी प्राचीन हैं जितनी कि स्वयं मनुष्यता, और इन बुराइयों के रूप योरप और अमरीका में भी उतने ही प्रबल हैं जितने कि भारतवर्ष में! परन्तु प्रत्येक उचित भारतीय देशभक्त इन कुरीतियों को सुधारने के लिए चिन्तित है और इनका अन्त करने के लिए उद्योग कर रहा है। ऐसे उद्योग में दूसरी जातियों के पुरुषों और स्त्रियों ने भी भारतवासियों की सहायता की है। परन्तु ऐसे सहायकों में मिस मेयो जैसे दूषित मस्तिष्कवालों की गणना नहीं है। ये लोग