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दुखी भारत

दूसरी बुराई वर्ण-व्यवस्था की है जिस पर मिस मेयो ने बड़े अतिशयोक्ति-पूर्ण आक्षेप किये हैं। परन्तु इसी बात के लिए अमरीका पर भी ऐसे ही आक्षेप जा सकते हैं। गोरे-अमरीकन हबशी-अमरीकनों से घृणा करते हैं और उनसे कोई सम्पर्क नहीं रखना चाहते। उस देश में वे अछूत तुल्य है। परन्तु मिस मेयो भारतीयों के अवगुण खोजने में इस प्रकार तन्मय है कि उसे अपने गृह में झांकने का अवकाश नहीं है। अस्पृश्यता के पक्ष में वह अनेक भारतीयों के मत उद्धृत करती है पर उसकी निन्दा में केवल महात्मा गान्धी को उपस्थित करती है।.........

आप लोगों में से किसी के भी लिए जिसके पास समय और सुअवसर हो 'मदर अमरीका' लिखना अत्यन्त सरल होगा। उसमें आप अमरीका के गन्दे जीवन को––उसकी सांसारिकता और अतुलनीय पाप-वृत्ति को, उसकी अन्यायपूर्ण हबशियों की हत्याओं और तलाकों को, उसकी वेश्या-वृत्तियों और अनाचारमय गलियों को––दिखाकर अमरीका के सम्बन्ध में सत्य का वैसा ही उपहास करते सकते हैं जैसा मेयो ने भारत के सम्बन्ध में किया है। परनतु उसकी सतह तक अपने आपको गिरा लेना अच्छा न होगा। मैं आप लोगों को यह सलाह दूँगी कि आप उसमें उदार दृष्टि के अभाव के लिए खुले आम खेद प्रकट करके उसे लजित करें और सत्य को उपस्थित करके उसकी आँखें खोल दें।......तब लोग आश्चर्य करेंगे कि मिस मेयो उन समस्त पुष्पों और फलों की ओर से आँखें मूँद कर, जो भारतवर्ष में भरे पड़े हैं, केवल गन्दगी की खोज में भटकतही; तब लोग उससे घृणा भी करेंगे।

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पार्लियामेंट के लिए मज़दूर-दल के एक उम्मेदवार मेजर डी॰ ग्रैहम पोल १९ अगस्त १९२७ के 'न्यू लीडर' (लन्दन ) में लिखते हैं––

मदर इंडिया पढ़ने के पश्चात्......कोई व्यक्ति इस निर्णय पर पहुँच सकता है कि पागलों के अतिरिक्त और कोई भारतवर्ष के लिए स्वराज्य की बात नहीं सोच सकता। यह बात और ध्यान में रखनी चाहिए कि कुछ वर्ष पूर्व इस पुस्तक की लेखिका मिस केथरिन मेयो ने फिलीपाइन्स की यात्रा की थी और उसके सम्बन्ध में भी एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक का नाम था 'भय के द्वीप' और इसका उद्देश्य था अमरीकन साम्राज्य-वाद का समर्थन करना। अब भारत की यात्रा करने के पश्चात् मिस मेयो ने मदर इंडिया द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद की उसी प्रकार सेवा की है।