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दुखी भारत

में काम कर चुका है इस बात का खण्डन कर सकता है। हाल के ही एक भूतपूर्व भारतीय गवर्नर सर रिजीनैल्ड कैडक भी 'मार्निंग पोस्ट' में लिखते हुए इसी बात पर जोर देते हैं कि मिस मेयो ने जो चित्र उपस्थित किया है––वह अत्यन्त गन्दा है और केवल बुराइयों को ही दर्शाता है। 'टाइम्स' का समालोचक भी यह स्वीकार करता है कि इसमें अतिशयोक्ति दोष है। उसका यह लिखना कि सन्तानोत्पत्ति करनेवाली आयु की स्त्रियाँ बिना विशेष रक्षा के भारतीय पुरुषों की पहुँच में जाने का साहस नहीं कर सकतीं, मेरी समझ में भयङ्कर और निराधार आक्षेप है। यदि मिस मेयो ब्रिटेन में आवे और यहाँ के अस्पतालों को देखे तो वह ब्रिटिश जीवन का भी वैसा ही गन्दा चित्र उपस्थित कर सकती है। यदि वह पुलिस की अदालत में कुछ दिन व्यतीत करे तो उसके ब्रिटिश गार्हस्थ्य जीवन के वर्णन में नाम मात्र को भी सुन्दरता न मिलेगी। स्वयं उसके देश पर विचार कीजिए। अमरीका की फिल्मों के आधार पर हम उसकी सभ्यता की क्या कल्पना नहीं कर सकते। यह एक अत्यन्त व्यङ्ग-पूर्ण बात जान पड़ती है कि एक ओर तो मिस मेयो की पुस्तक हमें भारतीय सभ्यता का बड़ा बीभत्स दृश्य दिखा रही है और दूसरी ओर भारत-सरकार अमरीकन फिल्मों की उस देश में खरीद रोकने के लिए कानून बनाना आवश्यक समझ रही है क्योंकि अश्लील होती हैं और उनका भारतीयों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

राजनैतिक बातों को भी मिस मेयो ने इसी प्रकार गंभीरता के साथ उपस्थित नहीं किया। उसने भारतीय व्यवस्थापिका सभाओं को भी देखा है और कहती है कि केन्द्रीय और प्रान्तीय सभी व्यवस्थापिका सभा की बैठकें बाहरी को ऐसी प्रतीत होती हैं मानों कमरे में छोटे और शैतान लड़के भरे हो और उन्हें खेलने के लिए अचानक एक बहुत बड़ी घड़ी मिल गई हो। "वे घड़ी में अपनी अँगुलियां छोड़ने के लिए लड़ते हैं और चीखते हैं, एक या दो पहिए निकाल लेने के लिए, मुख्य स्प्रिंग के साथ खेलने के लिए यत्न करते हैं, कीलों को उखाढ़ लेने की चेष्टा करते हैं।" मैंने भारतीय व्यवस्थापिका सभाओं को कार्य करते हुए देखा है और यह कहने के लिए विवश हूँ कि उनकी तुलना हमारी स्थानिक कौंसिलों से या स्वयं इम्पीरियल पार्लियामेंट से बड़े मजे में की जा सकती है। भारतीय बड़ी व्यवस्थापिका सभा के सभापति माननीय मिस्टर वी॰ जी॰ पटेल ने इस देश की यात्रा अभी अभी समाप्त की है। उनका अधिकांश समय हाउस आफ़ कामन्स में ही व्यतीत हुख था और व्यवस्थापिका सभा के मुकाबले में, जिसका कार्य वे बड़ी योग्यता के साथ सन्चालन करते हैं, हाउस आफ़ कामन्स की गड़बड़ी देख कर उन्होंने बड़ा आश्चर्य प्रकट किया था। जब मिस मेयो हमें यह बतलाती है कि भारतीय बड़ी व्यवस्थापिका सभा में स्वराज्यदल के लोग घंटों और दिनों