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दुखी भारत

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स्वर्गीय लार्ड लिटन ने, जब वे भारतवर्ष के वायसराय थे तो यहाँ इँगलैंड की सरकार को एक पत्र लिखा था। उसमें उन्होंने भारत सरकार की उच्च नौकरियों के लिए भारतीयों की मांगों का उल्लेख किया था और कहा था कि:––

"हम सब जानते हैं कि भारतीयों की ये आशाएँ कभी पूरी नहीं की जा सकती, न कभी की जायँगी। हमें दो बातों में से एक करना है––उन्हें रोक दें या धोखा दें। हम लोगों ने सबसे कम सचाई का मार्ग ग्रहण किया है।"

इसके आगे उन्होंने लिखा था कि:––

"इँगलैंड और भारत दोनों सरकारों ने यथाशक्ति प्रत्येक उपाय से उन वादों को हृदय में तोड़ दिया जिन्हें कानों को सुनाया था।"

मेरा विचार है कि हमने जो बार बार प्रतिज्ञा की है कि भारतवर्ष में भारतीय और योरपियन समान दृष्टि से देखे जायेंगे उसको भङ्ग करने के लिए एक और बहाना मिल जायगा।

अपरिवर्तनवादी सरकार जो कुछ भी हमारे पास है, सबको अपनी मुट्ठी में किये रहने का प्रयत्न करेगी। भारत के हित के लिए नहीं बल्कि अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए। यह देखना मज़दूरदल का कर्तव्य है कि हमारी प्रतिज्ञाएँ सम्मान के साथ पूर्ण की जाती हैं––भारतवासियों को अपना भार और उत्तरदायित्व स्वयं वहन करने का अवसर दिया जाता है और वे अपनी भलाई के स्वयं रक्षक बनते हैं

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श्रीयुत एच॰ एस॰ एल पोलक ने, जो एक अँगरेज़ वकील हैं जिन्होंने कई बार भारत की यात्रा की है और जिन्हें तीन महाद्वीपों में भारतीयों से काम पड़ा है, 'मैंचेस्टर गार्जियन' में एक पत्र प्रकाशित करवाया है। उसमें एक स्थान पर लिखते हैं:––

कुमारी लिलियन विन्सटेनली डाक्टर टैगोर के इस आक्षेप से सहमत नहीं हैं कि मिस मेयो ने 'जाति-द्वेष' और दूसरे द्वेषपूर्ण उद्देशों से प्रेरित