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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियां

होकर मदर इंडिया की रचना की है। मिस मेयो का पक्ष समर्थन करने के लिए उन्होंने अमरीका के प्रसिद्ध लेखकों की ऐसी कड़ी टीकाएँ उद्धृत की हैं जो उन्होंने स्वयं अपने देशवासियों के सम्बन्ध में लिखी थीं। जो उदाहरण उद्धृत किये गये हैं वे समान नहीं हैं। उन समालोचकों ने जिनकी निन्दा की है वे बदला ले सकते हैं। इसके विरुद्ध मिस मेयों ने फिलीपाइन्स में और भारतवर्ष में जिनकी निन्दा की है वे बदला नहीं ले सकते। जिन भारतीयों ने इस पुस्तक को या इसमें से दिये गये उद्धरणों को पढ़ा है वे सब इस विश्वास में सहमत हैं कि मिस मेयो ने जिन उद्देश्यों से प्रेरित होकर इस पुस्तक को लिखा है उनमें यह भी एक है। उनका दृढ़ निश्चय है कि बिना किसी सन्तोषजनक कारण के एक स्वच्छता-सम्बन्धी विवरण उपस्थित करने की आड़ में उसने वैसी ही राजनैतिक पुस्तक लिखी है जैसी कुछ समय पूर्व फिलीपाइन्स के सम्बन्ध में लिख चुकी थी। यही उसका उद्देश्य भी था। मिस मेयो का उद्देश्य कुछ भी रहा हो महात्मा गान्धी के शब्दों में उसने 'असत्य से भरी पुस्तक' लिखी है, और वक्तव्यों को तथा घटनाओं को अपने अनुकूल बनाने के लिए बुरी तरह तोड़ा-मरोड़ा है।......

भारतीय इस बात को भली भांति जानते हैं कि योरप और अमरीका में मदर इंडिया के पक्ष में बड़ा धूर्ततापूर्ण आन्दोलन हो रहा है और उसके उत्तरों पर कदाचित् ही कुछ ध्यान दिया जायगा। मेरे भारतीय मित्र—जो सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर हैं और अपने देशवासियों की दृष्टि में महान् आदरणीय हैं ऐसे प्रश्नकर्ताओं-द्वारा जिनका यह विश्वास है कि पुस्तक का विषय सत्य और अकाट्य है तथा लेखिका ने उत्तेजित होकर उन्हें उपस्थित किया है—बार बार यह प्रश्न किये जाने पर कि उनमें शक्ति हो तो पुस्तक में वर्णित बातों को असत्य सिद्ध करें, अत्यन्त क्रोध और घृणा से उद्विग्न हो कर मेरे पास आये हैं। यह विष कहां तक फैल गया है इसका अनुमान करना कठिन है; परन्तु इतना मैं निश्चय के साथ कह सकता हूं कि मिस मेयो का उद्देश्य चाहे जो रहा हो, पुस्तक के लिए जो घोर आन्दोलन किया गया है उसने भारतवर्ष में काले गोरे के जातिगत घृणा-भाव को इतना अधिक बढ़ा दिया है और घनीभूत कर दिया है कि इससे कोई असहमत नहीं हो सकता और इसके कुपरिणामों की गणना नहीं की जा सकती।.....

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